सोमवार, 2 जून 2014

है हिंद को इन पर नाज


पहली लोकसभा के हैं ये चार सांसद देश की संसद में कल से 16वीं लोकसभा नजर आएगी। पहली से 16वीं लोकसभा तक पहुंचने में देश को 62 वर्षों का सफर तय करना पड़ा है। इस बीच राजनीति ने कई करवटें बदली, राजनीति सुचिता कई बार तार-तार हुई, तो कई बार नेताओं के आचरण ने पूरी राजनीति को स्याह आवरण में ढक दिया। 1947 में जब देश आजाद हुआ तो देशवासियों को भरोसा था कि उनके नेता देश के निर्माण की अगुआई करेंगे और किये भी। लेकिन वक्त के साथ बहुत कुछ बदला। राजनीति में धनबल और बाहुबल बढेÞ हैं। इस स्थिति से देश की जनता तो दुखी है ही लेकिन सबसे ज्यादा दुखी अगर कोई है तो वे चार लोग हैं, जो देश की पहली लोकसभा के सांसद रहे हैं। पहली लोकसभा के अब केवल चार सांसद रेशमलाल जांगड़े, रिशांग कीशिंग, के. मोहन राव और सुब्रमण्यम तिलक जीवित बचे हैं और ये अपने जीवन के नौ दशक पूरे कर चुके हैं। 1952 के पहले संसदीय चुनाव में छत्तीसगढ़ तब के मध्यप्रदेश से जीत कर संसद पहुंचने वाले रेशम लाल जांगड़े फिलहाल 90 वर्ष है और फिलहाल वह छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के एक सरकारी मकान में रहते हैं। वह कहते हैं कि आजादी के आंदोलन ने हमें तपा कर मजबूत बना दिया था, यही वजह है कि इस उम्र में भी पूरी तरह सक्षम हैं और चुनाव अभियानों में शामिल होने का भी दम-खम रखते हैं। जांगड़े का जन्म इसी राज्य के परसाडीह गांव में एक गरीब दलित किसान परिवार में सन 1925 में हुआ था। वह रोज तैर कर महानदी पार करके स्कूल जाते थे। 1939 से 1942 के बीच वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रभावित रहे और भड़काऊ भाषण देने की वजह से जेल भेज दिये गये। लेकिन, इसके बाद उन पर गांधीजी का असर हुआ और वह भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हो गये। इस क्रम में वह दलित समुदाय और अन्य पिछड़ी जातियों के बड़े नेता के रूप में उभरे। यहीं से वह नेहरू की निगाह में आये। अनुसूचित जाति से आने के बावजूद उन्होंने 1952 में पहला लोकसभा चुनाव कांग्रेस के टिकट पर एक सामान्य सीट, बिलासपुर से लड़ा। 70 के दशक में वह आपातकाल के दौरान जेपी आंदोलन से प्रभावित हुए और जनता पार्टी में शामिल हो गये। यहां से वह भाजपा की ओर मुड़ गये। संसद में उनकी अंतिम पारी 1989 से 1991 तक, भाजपा सदस्य के रूप में रही। इसके बाद उन्हें टिकट नहीं मिला। वह चुनाव प्रचार में धनबल और बाहुबल के बढ़ते प्रभाव से दुखी हैं। देश के सबसे बुजुर्ग पूर्व सांसद है 94 वर्षीय रिशांग किशिंग। वह कुद को राजनीति से रिटायर कर चुके हैं। इस साल की शुरूआत में उन्होंने मणिपुर से राज्यसभा जाने के लिए अपनी पार्टी कांग्रेस को मना कर दिया था। वह चार बार मणिपुर के मुख्यमंत्री भी रहे हैं। वह भी संसद में आये मौजूदा बदलावों से दुखी हैं। इसी तरह 90 वर्षीय के. मोहन राव आंध्र प्रदेश के गोदावरी जिले के तल्लारेवु में रहते हैं। वह सिर्फ 27 साल की उम्र में सांसद बन गये थे। 1952 में वह भाकपा के टिकट पर कांकीनाडा और राजमुंदरी सीटों से लड़े थे। वह जमींदारी के खिलाफ आंदोलन के अगुवा थे। आज उनके पास एकमात्र संपत्ति तल्लारेवु में 8 एकड़ जमीन का एक टुकड़ा है। वह दो साल पहले तक 1400 रुपये पेंशन पर गुजारा कर रहे थे। इस बीच संसदीय कार्य मंत्री राजीव शुक्ला ने इस बारे में खबर पढ़ी और उनकी पेंशन 20,000 रुपये महीना करवा दी। 93 वर्षीय सुब्रमण्यम तिलक ने कानून की पढ़ाई की थी और उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था। इसके लिए उन्हें विजियानगरम में चार महीने की जेल भी हुई थी। 1940 में जयप्रकाश नारायण विजियानगरम आये। उनके आह्वान पर वह मजदूर आंदोलन से राजनीति में आये। वह जेपी के अलावा विनोबा भावे, अशोक मेहता, जॉर्ज फनार्डीस और जी रामचंद्र राव से करीब से जुड़े थे। 1952 में वह प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर 32 साल की उम्र में संसद के लिए चुने गये। यह आतिशी नेता दोस्तों से उधार लेकर शपथ लेने संसद गये थे। बाद में उन्होंने सक्रिय राजनीति छोड़ दी। वह भी वर्तमान राजनीति में नैतिकता खत्म होने से दुखी हैं।

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