शनिवार, 12 नवंबर 2011

प्रेम और सौंदर्य का दस्तवेज है 'परिजात'


वैभवता का प्रतीक दुबई. संगमरमरी चमचमाहट लिए पालमैन होलट के फर्श पर
प्रतिविंवित होती तुलिकाधारक हेशम मल्लिक की कलाकृति, जयश्री भोसले की कविताओं
को नया अर्थ देती है. भाव और संवेदनाओं की अभिव्यक्ति का माध्यम काव्य व चित्र
- यह जुगलबंदी काफी कुछ बासी छोड़ कर टटका सोचने पर विवश करती है और मानवीय
मूल्यों के प्रति संवेदनशीलता को प्रेम और सौंदर्य की ठोस जमीन मुहैया कराती
है. जयश्री भोसले की 21 कविताओं का संग्रह ‘परिजात’ खुद में परिपूर्ण है लेकिन
हेशम मल्लिक ने कविताओं के भाव को जैसे कैनवास पर उकेरा है, वह तारीफ-ए-काबिल
है.

हिंदुस्तां से हजारों मील दूर दुबई में 10 नवंबर की शाम जब इस काव्य-चित्र
प्रदर्शनी ‘प्रेरणा का प्रकाश’ का उद्घाटन हुआ तो होटल की वह लॉबी भारतीयता के
सुंगंध से सुवाशित हो उठी.

प्रदर्शनी तो 16 नवंबर तक चलेगी लेकिन काव्य-चित्र प्रदर्शनी का प्रचलन आम तौर
जो कि असाध्य माना जाता है वह लंबे समय तक साहित्य व कला प्रेमियों के स्मरण
में रहेगा.

संग्रह की एक –एक कविताएं प्रेम के बहुआयामी अर्थों को बड़ी दृढ़ता के साथ
परोसती है और इसकी संप्रेषणियता को प्रदर्शनी में लगे चित्र बल प्रदान करते
हैं, इससे यह लोगों तक सीधे-सीधे, बगैर किसी लाग-लपेट के अपने भावों के साथ
पहुंचती है. बड़ौदा में अपनी युवावस्था बीताने वाली जयश्री की यादों में भारत
और भारतीयता किस कदर बसी है और प्रेम की परिभाषा एक साथ कई चीजों को
सिलसिलेवार ढंग से जोड़ कर उसे रोमांस से आध्यात्म तक सफर तय कराती है. यह तो
कविताओं को पढ़ने पर ही जाना जा सकता है.

मल्लिक के अनुसार, किसी के लिपिबद्ध विचार और भाव को कैनवास पर उकेरना
निःसंदेह काफी चुनौतियों से भरा होता है लेकिन यह चुनौती तब आनंद में बदल जाता
है, जब लिपिकार का सक्रिय सहयोग बराबर दस्तक देती हो. वहीं जयश्री कहती हैं, ‘यह
जीये गये अनुभवों का आह्लादित भाव है और उसे मल्लिक ने अपनी पूरी ऊर्जा से
उकेरा है.’

प्रदर्शनी में लगे चित्रों की ओर लोग सहज ही आकर्षित हो रहे हैं क्योंकि लगता
है जैसे भाव कैनवास और रंगों के साथ बस अब छलक पड़ेंगे. यही इसकी खासियत व
सार्थकता भी है. जयश्री की कविताएं इन चित्रों की प्रेरणा और प्रतिरूप है.