सोमवार, 2 फ़रवरी 2015

कूटनीति की राजनीति


यह गजब का परिवर्तन है कि जो समाजवादी अमेरिका का नाम सुनते ही नाक-भौ सिकोड़ते थे, वहीं समाजवादी अमेरिकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा की खैरमकदम करने से चुकने पर अफसोस जता रहे हैं. दरअसल, ओबामा के तय कार्यक्रम के तहत उन्हें 27 जनवरी को आगरा स्थित ताजमहल के दीदार के लिए जाना था लेकिन उनका कार्यक्रम अरब के शाह के निधन के कारण रद हो गया. दुनिया बड़ी तेजी से हाल के कुछ वर्षों में बदली है और साथ ही द्विपक्षीय संबंध का अर्थशास्त्र भी बदला है और इसका आभाष उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को भी है. वहीं देश में जहां 66 वें गणतंत्र दिवस की मेहमाननवाजी में व्यस्त ओबामा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ भारतीय जनमानस से ‘मन की बात’ करने को लेकर काफी उत्सूक थे, तभी गणतंत्र दिवस की शाम ‘कामन मैन’ के सृजनकर्ता कार्टूनिस्ट आरके लक्ष्मण ने दुनिया को अलविदा कर दिया. एक और चीज गौर करने लायक रही कि ओबामा की भारत यात्रा पर दुनिया भर की मीडिया ने खास कवरेज की, अलग-अलग देशों ने इसे अलग-अलग तरीके से पेश किया. जहां भारतीय और अमेरिकी मीडिया में इस यात्रा की सार्थकता को काफी ‘स्पेस’ मिला, वहीं पाकिस्तानी मीडिया ने भारत-अमेरिका की बढ़ती नजदीकियों के जरिये खुद के वजीर-ए-आजम नवाज शरीफ पर निशाना साधा, तो चीन की मीडिया खास कर सरकारी मीडिया ने काफी संतुलित तरीके से इस पर टिप्पणी की और भविष्य में भारत-चीन संबंधों पर ओबामा की यात्रा का कोई प्रभाव नहीं पड़ने के प्रति अपना विश्वास जताया. ओबामा के भारत दौरे के बाद अमेरिका द्वारा चीन पर नकेल कसने की कयासों का खंडन करते हुए अमेरिकी उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बेन रोड्स ने कहा भी कि नई दिल्ली के साथ संबंध बढ़ाने का अर्थ यह नहीं है कि हम चीन को नियंत्रित करना चाहते हैं. एशिया प्रशांत क्षेत्र में भारत-अमेरिका के रिश्ते किसी देश के खिलाफ नहीं है बल्कि साझा हितों को प्रोत्साहित करने का है. हालांकि चीन की सरकारी मीडिया में प्रकाशित खबरों में चीनी विशेषज्ञों ने भारत को अमेरिकी चाल में न फंसने की सलाह भी दी है. अगर भारत के पड़ोसी देशों के नजरिये से ओबामा की यात्रा को देखा जाए तो पाकिस्तान का मानना है कि इससे भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों पर जमे बर्फ पर शक-शुबहा की परत जमेगी. और ऐसा लगता है कि अमेरिका भारत के साथ अपने रिश्ते को मजबूत बनाने में पाकिस्तानी भावनाओं का ज्यादा ख्याल नहीं करेगा. पाकिस्तान की इस सोच को इस बात से भी बल मिलता है कि जब ओबामा भारत के दौरे पर थे तब पाकिस्तान और चीन के बीच उच्चस्तरीय बैठकें हो रही थी. इस पर भारतीय विदेश नीति के विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका के साथ भारत की बढ़ती नजदीकियों से भले ही पाकिस्तान पर भारत के साथ वार्ता का दबाव बने या फिर भारत के खिलाफ आंतकवाद को नियंत्रित करने तथा लखवी, दाऊद और हाफिज सईद पर नकेल कसने का दबाव बने लेकिन दोनों मुल्कों के बीच रिश्तों में तनातनी और बढ़ेगी. वहीं चीन के साथ भी रिश्ते ठंडे पड़े रहेंगे. लेकिन इन विश्लेषणें से इतर इसे इस तरह भी देखा जा सकता है कि भारत-अमेरिका के रिश्ते मजबूत होने की स्थिति में चीन भी भारत के साथ पींगे बढ़ायेगा क्योंकि चीन की नजर भारत के विशाल बाजार पर है. उसे एशिया में अन्यत्र कहीं ऐसा बड़ा बाजार नहीं मिलेगा जहां वह अपने दोयम दर्जे के उत्पादों की खपत कर सके. वहीं भारत की मौजूदा विदेश नीति चीन के साथ सावधानी बरतते हुए आर्थिक रिश्ते बढ़ाने पर जोर दे रहा है. ताकि भारत में निवेश बढ़े. साथ ही भारत पड़ोसी मुल्कों के साथ किसी भी तरह के टकराव से बचते हुए दुनिया में एक संयमित और मजबूत लोकतंत्र के रूप में अपनी छवि को पेश करना चाहता है ताकि वैश्विक निवेशकों को लिए भारत एक बेहतर निवेशस्थल बने. वहीं देशी राजनीति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका का साथ लेकर ‘सबका साथ, सबका विकास’ और ‘मेक इन इंडिया’ के जरिये विकास की नई इबारत लिख गैर भाजपाई दलों को जिनमें समाजवादी, समाजिक न्याय और साम्यवादी विचारधारा के समर्थकों को बदले वैश्विक सोच और माहौल में अपनी नीति को यथोचित साबित करना चाहते हैं. पारंपरिक रूप से इन विचारधाराओं का आरंभ से ही अमेरिका विरोध की नीति रही है. प्रधानमंत्री मोदी अपने विदेश नीति से न केवल वैश्विक फलक पर बल्कि देशी राजनीति में भी अपना सिक्का चलाना चाहते हैं और बीते आठ महीने के कार्यकाल में वे इसमें सफल होते दिख रहे हैं.

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