सोमवार, 16 नवंबर 2009

इंटरनेट पर ‘लाल-गढ़’

श्रीराजेश
नक्सलवाद के समर्थक मानते हैं कि प्रजातंत्र की विफलता नक्सली आंदोलन केअभ्युदाय की वजह होती है और मजबूर होकर लोग हथियार उठाते हैं. लेकिन वास्तविकता यह है कि वर्तमान का नक्सली आंदोलन अपने रास्ते से भटक गया है इसकेतात्कालिक कारण है, न तो व्यवस्था सुधर रही है और न इसकेसुधरने केसंकेत हैं, इसलिए नक्सली आंदोलन बढ़ रहा है. इसमें होने वाली राजनीति को देख सोचना पड़ता है कि वर्ग संघर्ष बढ़ाने केपीछे राजनीति है या राजनीति केकारण वर्ग संघर्ष बढ़ा है. कुछ समय पहले तक नक्सलवाद को सामाजिक-आर्थिक समस्या माना जाता रहा है, मगर अब इसने चरमपंथ की शक्ल अख्तियार कर ली है.
वर्तमान में नक्सलियों केसंगठन पीपुल्स वार ग्रूप और माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) दोनों संगठन मुख्यत: बिहार, झारखंड, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ में सक्रिय हैं, जिनकी गिनती गरीब राज्यों केरूप में होती है. इन राज्यों केखेतिहर मजदूरों केबीच इन वाम गुटों केलिए भारी समर्थन है. इस खेप में अब छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश भी आ चुकेहै. छत्तीसगढ़ का बस्तर जिला, जिसकी सीमाएं आंध्रप्रदेश से लगी हुई हैं, में नक्सलवादी आंदोलन गहरे तक पैठ जमा चुका है. प.बंगाल से शुरू हुआ नक्सलवाद अब उड़ीसा, झारखंड और कर्नाटक में भी पैर फैला चुका है.
हाल केकुछ वर्षों में देश में नक्सली गतिविधियों में कुछ ज्यादा ही तेजी आयी है. लालगढ़ में राजधानी एक्सप्रेस को नक्सलियों द्वारा बंधक बनाये जाने की वजह से नक्सलवाद को खत्म करने जैसी बहसें पहले की तरह फिर एक बार तेज हो गयी है. हालांकि नक्सलियों द्वारा किसी ट्रेन का हाईजैक करने का दु:साहस पहली बार किया गया. नक्सली हिंसा को रोकने केलिए लंबे समय से कछुए की गति से सरकारी प्रयास हो रहे है. यही कारण है कि नक्सली हिंसा और उनकी गतिविधियां रुकने केबजाय और तेज होती जा रहीं है.
माओवादी आंदोलन..., नक्सलवादी आंदोलन.... ये शब्द जैसे ही आते हैं. एक ऐसी छवि उभरती है, जिसमें तंगहाली में लिपटा जनसमूह, जंगलों और गांवों की पगडंडियों पर एक कंधे पर लाल झंडा और दूसरे कंधे पर बंदूक रखे, व्यवस्था परिवर्तन केजोशीले नारे लगाता दिखता है. अखबारों में वीभत्स चित्र वाले समाचार भी नजर आते हैं, जो नक्सली हिंसा केतांडव को बयां करते हैं. लेकिन अब इनमें एक और दृश्य जुड़ गया है और व्यापकता केसाथ. अब व्यवस्था की खामियों को दूर करने केलिए कलम, बंदूक और इंकलाबी नारे केसाथ कंप्यूटर स्क्रीन पर नक्लवाद की अवधारणा को और पुष्ट करती सामग्री भी है.
नक्सलियों की कथित वैचारिक क्रांति केप्रसार में इंटरनेट सुरक्षित साधन बन गया है. गूगल महाराज की इन पर दया दृष्टि कुछ अधिक ही है. नक्सली आंदोलन से संबंधित जानाकारी गूगल से मांगी जाएं तो महज 27 सेकेंड में 33,700 लिंकों की जानकारी देता है. इसी तरह लालगढ़ से संबंधित जानकारी केलिए महज 0.08 सेकेंड में 1,38,000 और माओवाद केलिए 0.25 सेकेंड में 2,09,000 लिंकों की जानकारी उपलब्ध कराता है. वहीं समाजवाद केलिए 0.31 सेकेंड में 57,300, गांधीवाद केलिए 0.25 सेकेंड में 16,700, साम्यवाद केलिए 0.20 सेकेंड में 24, 100 और पूंजीवाद केलिए 0.28 सेकेंड में 36, 900 लिंक उपलब्ध कराता है. ये आंकड़े बताते है कि अन्य किसी भी विचारों की अपेक्षा नक्सलवादी विचार का प्रसार इंटरनेट केमाध्यम से कहीं अधिक हुआ है. अब बेबसाइट्स और बड़ी संख्या में ब्लॉग्स केजरिये नक्सली अपनी खबरों को तत्काल दुनिया भर में पहुंचा रहे हैं. हाल केवर्षों में माओवादियों द्वारा अपने विचारों एवं सूचनाओं केआदान-प्रदान केलिए आधुनिक संचार माध्यमों खासकर इंटरनेट का भरपूर उपयोग किया है. आज तकरीबन डेढ़ दशक पहले नक्सली संगठनों को सूचनाओं और विचारों केप्रसार केलिए प्रिंट माध्यमों मसलन संगठन केमुखपत्र और समाचार बुलेटिनों पर निर्भर रहना पड़ता था. ये प्रकाशित सामग्री उनकेलिए खतरे भी बनते थे. भारी संख्या में ऐसे लोगों की गिरफ्तारी भी होती थी जिनकेपास नक्सली साहित्य बरामद होते थे. इस खतरे की वजह से इन प्रकाशित सामग्री का वितरण भी कम खतरनाक नहीं था. जब इंटरनेट की तकनीक ने इस खतरे को काफी हद तक कम कर दिया है. लोग स्वतंत्रतापूर्वक ब्लागों व वेबसाइट्स पर अपने विचार लिपिबद्ध करते हैं. अब नक्सली दूरदराज केगांवों, पहाड़ों में या फिर किसी शहर में, कहीं भी एक कंप्यूटर पर अपनी सामग्री तैयार कर इंटरनेट केजरिये दुनियाभर केलिए उपलब्ध करा रहे हैं. इंटरनेट ने इन सारी समस्याओं का एक झटकेमें समाधान कर दिया है. इंटरनेट पर नजर रखनेवाली एजेंसियां ऐसे ब्लॉग्स को तलाश कर इन्हें निष्क्रिय करती रहती हैं, लेकिन इससे नक्सलियों पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता. जैसे ही कोई वेबसाइट या ब्लाग निष्क्रिय किये जाते हैं, साथ-साथ देश विदेश में फैले नक्सलियों की वेबसाइट पर नये ब्लाग या वेबसाइट का पता उपलब्ध करा दिया जाता है ताकि लोग उन सामग्री तक पहुंच सके. पश्चिम बंगाल का नंदीग्राम, सिंगूर और लालगढ़, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और आंध्रप्रदेश में नक्सलियों की कारगुजारियों का लाल रंग से इंटरनेट भरा पड़ा है. कई ऐसे ब्लाग्स और वेबसाइटें है जो नक्सली विचारों वाले आलेखों, घटनाओं की रिपोर्ट तथा अन्य जानकारियों की लिंक उपलब्ध कराती है. एक ब्लॉग रिवोल्यूशन इन साउथ एशिया में लालगढ़ प्रकरण से जुड़ी खबरों और इसकी पृष्ठभूमि की जानकारी उपलब्ध कराने वाली विभिन्न वेबसाइट्स या ब्लागों केलिंक उपलब्ध कराये गये हैं. इसी तरह एनडीरांची (नई दुनिया) ब्लाग पर भी इंटरनेट पर फलते फूलते नक्सलवाद पर विष्णु राजगढिय़ा का आलेख है जो विभिन्न वेबसाइटों पर नक्सली आवरण को दिखाता है. वहीं नक्सल टेरर वाच जैसा वेबसाइट नक्सली हिंसा और गतिविधियों केखिलाफ पुलिस प्रशासन केअभियानों पर फोकस करता है. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार सही मायने में व्यक्ति का मौलिक अधिकार है, लेकिन अब नये सिरे से फिर से विचार करना होगा कि क्या नक्सलवादी विचारधारा का इंटरनेट पर बढ़ता वर्चस्व हमें कैसा आयाम देगा?

गुरुवार, 5 नवंबर 2009