रविवार, 20 अप्रैल 2014

संबंधों से नहीं इनकार, फिर क्यों विरोधी हैं बेकरार


16वीं लोकसभा के लिए जैसे ही चुनावी बिगुल बजा, सारे राजनीतिक दल अपने स्कोर को बढ़ाने के लिए तरह-तरह की जुगत बैठाने में लगे गये। रणनीतिया बनायी जाने लगी। विरोधियों को कैसे घेरा जाए। जो प्रचलित मुद्दे हैं, खास कर महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, और विकास, वह तो है ही। ताजी-ताजी जन्मी आम आदमी पार्टी ने भी अपने को भ्रष्टाचार से दो-दो हाथ करते दिखाने की कोशिश में कांग्रेस और भाजपा को भ्रष्टाचार की गंगोत्री बताने की कोशिश की। इसी क्रम में राबर्ट वाड्रा द्वारा जमीन सौदे में हेराफेरी का मामला उठा कर कांग्रेस को असहज स्थिति में लाने की कोशिश की तो भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के उद्योगपति गौतम अडानी और मुकेश अंबानी से संबंधों को उजागर किया। खैर, राबर्ट वाड्रा के मुद्दे शुरुआती दौर में मीडिया की सुर्खियों में रहा लेकिन उसके बाद यह मुद्दा शनै: शनै: लोप हो गया। लेकिन जैसे -जैसे तुनावी ताप बढ़ा और कथित मोदी लहर के प्रभाव के साथ ही मोदी और अडानी के बीच के संबंध भी चुनावी मुद्दा बनने लगा। इस संबंध पर ना केवल आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने ही निशाना साधा बल्कि कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी भी इससे नहीं चूके। दरअसल, अडानी समूह का विस्तार भी बीते 10-12 सालों में गुजरात में बड़ी तेजी से हुआ है और मोदी भी गुजरात की सत्ता में तकरीबन इतने दिन पहले ही आये, तो यहीं बना यह मुद्दा। बात 1980 के दशक की है, जब अहमदाबाद की सड़कों पर एक युवा ग्रे कलर के बजाज सुपर स्कूटर पर पीछे अपने एक दोस्त को बैठा कर घूमा करता था। यह युवा और कोई नहीं बल्कि अडानी समूह के प्रमुख गौतम अडानी है और स्कूटर पीछे बैठने वाले युवा उनके दोस्त मलय महादेविया है। इन दोनों दोस्तों की जोड़ी आज भी उसी तरह है। अडानी अपने व्यवसाय को बढ़ाना चाहते थे, तो नरेंद्र मोदी राज्य में औद्योगिक क्रांति लाने के योजना बना रहे थे। इसी योजना में मोदी ने यह प्रावधान किया कि राज्य में भूमि बैंक बनायी जायेगी, जो किऔद्योगिक ईकाइ लगाने वालों को सरकार कम कीमत में देगी। गुजरात सरकार के इस योजना का लाभ कई उद्योगपतियों को मिला। इसमें रटन टाटा का नाम भी शामिल है। जब पश्चिम बंगाल सिंगूर में नैनो प्लांट को लेकर बवाल मचा तो टाटा ने वहां से अपनी परियोजना हटाने की घोषणा की और नरेंद्र मोदी ने गुजरात के साणंद में उन्हें प्लांट लगाने के लिए जमीन मुहैया करायी। लेकिन अडानी को लेकर ही वबाल ज्यादा मचा। यूं भी नरेंद्र मोदी ने गुजरात के औद्योगिक विकास की गति को तेज करने और औद्योगिक माहौल को सशक्त करने के लिए ‘वाइब्रेट गुजरात’ हर साल कराते रहे। इससे वे उद्योगपतियों के खासे चहेते बने। स्वाभाविक हैं कि मोदी ने जनता के समर्थन और उद्योगपतियों के साथ अपने संबंधों का खासा राजनीतिक लाभ भी उठाया। अडानी को भी गुजराट के तटीय इलाके में एक बड़ा भू-भाग रियायती दर पर दिया गया और यहीं रियायती दर पर जमीन दिये जाने का मुद्दा आज चुनावी चर्चा का विषय बना है। दूसरी ओर 2012 के वाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन में ही मुकेश अंबानी ने नरेंद्र मोदी के संबंध में कहा कि वह अब राज्य के विकास के बाद देश के विकास के लिए कुछ करें। संकेत साफ था, वे मोदी को भावी प्रधानमंत्री के तौर पर पेश कर रहे थे। वह संकेत अब मूर्तरूप लेने के क्रम में है। इसी बीच गैस कीमतों को लेकर जब बवाल मचा और विरप्पा मोइली के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई तो जहां कांग्रेस ने इस चुप्पी साधी, वहीं नरेंद्र मोदी ने भी इस मामले पर कोई बयान नहीं दिया। नरेंद्र मोदी इस मामले पर चुप्पी विरोधियों को मुकेश अंबानी के साथ उनके संबंध को पुख्ता बताने को बल मिला। रही-सही कसर तब पूरी हुई जब नरेंद्र मोदी को अडानी के निजी हेलीकाप्टर से उतरने की तस्वीर अरविन्द केजरीवाल द्वारा जारी की गई। हालांकि अडानी या अंबानी दोनों ने ही मोदी से अपनी नजदीकियों को कभी छिपाने की कोशिश नहीं की, तब भी नहीं जब साल 2004 में एनडीए सरकार सत्ता से बाहर हो गई थी। हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान में अपने पावर बिजनेस को बढ़ाने और ओडिशा में बंदरगाहों के लिए बिडिंग के वास्ते अडानी ने यूपीए में भी अपने कई दोस्त बनाए हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ ने अडानी की उनके शुरूआती दिनों में मदद की थी। कई बिजनेसमैन एनसीपी नेता शरद पवार से भी अडानी की नजदीकियों की बात बताते हैं। इसी तरह मुकेश अंबानी के नरेंद्र मोदी के अलावा भाजपा और कांग्रेस के लगभग सभी वरिष्ठ नेताओं के साथ गहरे संबंध जगजाहिर हैं। लेकिन क्या इन दोनों उद्योगपतियों के साथ संबंधों को लेकर नरेंद्र मोदी के चुनावी महासमर में कोई असर पड़ेगा? इस प्रश्न का उत्तर तो 16 मई को ही मिल पायेगा।

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