श्रीराजेश
मध्यप्रदेश सरकार की ओर से चलाये जा रहे कन्यादान योजना के तहत शहडोल जिले में सरकारी सामूहिक विवाह सम्मलेन के पहले युवतियों का कौमार्य परीक्षण कराए जाने का मामला प्रकाश में आया है. यह घटना शर्मशार करने वाली है. हद तो यह है कि यह पूरी घटना स्थानीय जिलाधिकारी के निर्देश और नेतृत्व में हुआ. इसकी जानकारी मिलने के बाद राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष गिरीजा व्यास ने राज्य सरकार से जवाब तलब किया और मुद्दा मिलते ही राजनेता अपनी राजनीतिक कलाबाजी दिखाने में पीछे नहीं रहे. राज्यसभा में जम कर इस मुद्दे पर हंगामा हुआ लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा. यह खबर सोमवार को प्रकाश में आया इसके बाद बहती गंगा में हाथ धोने के लिए कई तथाकथित महिला संगठनो ने भी पहल शुरू कर दी लेकिन आश्चर्य की बात है कि यह पता लगने के बाद कि इस सरकारी सामूहिक विवाह सम्मेलन का आयोजन जिलाधिकारी के नेतृत्व में हुआ था. और इस कौमार्य परीक्षण का मामला जिलाधिकारी के साथ अन्य प्रशासनिक अधिकारियों के संज्ञान में था, इसके बावजूद अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई. हालांकि प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है कि गरीब परिवार जहां अपनी बेटियों की शादी इस योजना के जरिए कराकर सामाजिक दायित्व से मुक्त होना चाहते हैं, वहीं कुछ लोग इन शादियों के जरिए आर्थिक लाभ अर्जित करने में पीछे नहीं है. अभी हाल ही में शहडोल जिले में आयोजित सामूहिक विवाह समारोह में 13 ऐसी युवतियां शादी करने पहुंची जो गर्भवती थी. इस आयोजन में कुल 151 विवाह होना था. मगर 13 युवतियों के गर्भवती पाए जाने पर सिर्फ 138 लड़कियों की शादी कराई गई. अधिकारियों ने यह भी कहा इस समारोह में महिला रोग विशेषज्ञ की भी तैनाती की गई थी, जिन्होंने युवतियों से उनकी निजी समस्याएं पूछी और माहवारी न होने की बात कहे जाने पर उनका चिकित्सकीय परीक्षण कराया गया तो 13 युवतिया गर्भवती निकली.
खैर इस तरह के मामले के प्रकाश में आने के बाद प्रशासन की ओर से उसके खंडन में लगभग इसी तरह के बयान आते हैं और देश के लोग प्रशासनिक अधिकारियों और राजनेताओं के रटी-रटाई बात सुनने के आदी हो गये हैं. यहां गौर करने वाली बात है कि सरकार की कन्यादान योजना के साथ वर व वधू पक्ष आपसी रजामंदी से विवाह तय करते है और दोनों एक दूसरे के स्थिति से वाकिफ होतें हैं. सरकार की भूमिका बस इतनी होती है ये गरीब लोग विवाह समारोह का खर्च उठा पाने में अक्षम लोगों को इस समारोह के आयोजन के जरिये मदद करना. मान लिया जाय कि कोई युवती गर्भवती ही है और जो युवक उससे विवाह रचाना चाहता है उससे युवती के गर्भवती होने से कोई फर्क नहीं पड़ता तो क्या प्रशासन को यह अधिकार है कि युवती के गर्भवती होने का हवाला दे कर उन्हें विवाह करने से रोका जाय. इसी तरह ऐसे भी मामले मध्यप्रदेश में पहले आ चुके है जिनमें विवाह पूर्व ही युवक व युवती के बीच शारीरिक संबंध बन गये, बाद में उन्होंने शादी की. यदि ऐसा होता भी है तो गुनाह क्या है. दूसरी ओर राज्य महिला आयोग की सदस्य सुषमा जैन का कहना भी काफी हद तक सही है कि पैसे के लालच में कई गरीब परिवार अपने बच्चों की दोबारा दिखावटी शादी करते है. वस्तुतः वह जोड़ा काफी पहले वैवाहिक बंधन में बंध चुका होता है लेकिन सरकार से मिलने वाली आर्थिक मदद के लालच में वह जोड़ा दोबारा शादी रचाना पहुंचता है. इसमें युवतियों के गर्भवति होने का मामला बड़ा ही समान्य है. मामला भले ही कौमार्य परीक्षण का न रहा हो लेकिन इन युवतियों के किसी भी प्रकार की कोई चिकित्सकीय जांच की उस समय कोई जरुरत नहीं है. शासन व प्रशासन को इस पर विचार करना होगा. इससे न केवल वैवाहिक बंधन में बंधने वाले जोड़े के रिश्ते खत्म होंगे बल्कि सामाजिक ताना-बाना भी छिन्न-भिन्न हो सकता है. सरकार ऐसी कोई ठोस पहल क्यों नहीं करती कि राज्य की जनता की आर्थिक स्थिति इतनी सक्षम हो जाये कि उन्हें सरकारी खैरात की जरुरत न पड़े. सरकार को शहडोल में हुए सामूहिक विवाह समारोह के संबंध में उठे आरोपो की गंभीरता से जांच कराना चाहिए और यदि कौमार्य परीक्षण जैसे अमर्यादित कोई कृत्य हुआ है तो संबंधित दोषियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करनी चाहिए. सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप और बयानबाजी के माध्यम से इस घटना से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए. महिला संगठन सिर्फ अपनी उपस्थिति दर्ज न कराये बल्कि इस मामले के संच को सामने लाये तभी वे खुद को महिलाओं के हितों के प्रति समर्पित कह पायेंगी, अन्यथा इस तरह की घटनाएं होती रहेंगी और इसे हमलोग शर्मनाक घटना कह कर इससे अपना पल्ला झाड़ते रहेंगे.
मध्यप्रदेश सरकार की ओर से चलाये जा रहे कन्यादान योजना के तहत शहडोल जिले में सरकारी सामूहिक विवाह सम्मलेन के पहले युवतियों का कौमार्य परीक्षण कराए जाने का मामला प्रकाश में आया है. यह घटना शर्मशार करने वाली है. हद तो यह है कि यह पूरी घटना स्थानीय जिलाधिकारी के निर्देश और नेतृत्व में हुआ. इसकी जानकारी मिलने के बाद राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष गिरीजा व्यास ने राज्य सरकार से जवाब तलब किया और मुद्दा मिलते ही राजनेता अपनी राजनीतिक कलाबाजी दिखाने में पीछे नहीं रहे. राज्यसभा में जम कर इस मुद्दे पर हंगामा हुआ लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा. यह खबर सोमवार को प्रकाश में आया इसके बाद बहती गंगा में हाथ धोने के लिए कई तथाकथित महिला संगठनो ने भी पहल शुरू कर दी लेकिन आश्चर्य की बात है कि यह पता लगने के बाद कि इस सरकारी सामूहिक विवाह सम्मेलन का आयोजन जिलाधिकारी के नेतृत्व में हुआ था. और इस कौमार्य परीक्षण का मामला जिलाधिकारी के साथ अन्य प्रशासनिक अधिकारियों के संज्ञान में था, इसके बावजूद अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई. हालांकि प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है कि गरीब परिवार जहां अपनी बेटियों की शादी इस योजना के जरिए कराकर सामाजिक दायित्व से मुक्त होना चाहते हैं, वहीं कुछ लोग इन शादियों के जरिए आर्थिक लाभ अर्जित करने में पीछे नहीं है. अभी हाल ही में शहडोल जिले में आयोजित सामूहिक विवाह समारोह में 13 ऐसी युवतियां शादी करने पहुंची जो गर्भवती थी. इस आयोजन में कुल 151 विवाह होना था. मगर 13 युवतियों के गर्भवती पाए जाने पर सिर्फ 138 लड़कियों की शादी कराई गई. अधिकारियों ने यह भी कहा इस समारोह में महिला रोग विशेषज्ञ की भी तैनाती की गई थी, जिन्होंने युवतियों से उनकी निजी समस्याएं पूछी और माहवारी न होने की बात कहे जाने पर उनका चिकित्सकीय परीक्षण कराया गया तो 13 युवतिया गर्भवती निकली.
खैर इस तरह के मामले के प्रकाश में आने के बाद प्रशासन की ओर से उसके खंडन में लगभग इसी तरह के बयान आते हैं और देश के लोग प्रशासनिक अधिकारियों और राजनेताओं के रटी-रटाई बात सुनने के आदी हो गये हैं. यहां गौर करने वाली बात है कि सरकार की कन्यादान योजना के साथ वर व वधू पक्ष आपसी रजामंदी से विवाह तय करते है और दोनों एक दूसरे के स्थिति से वाकिफ होतें हैं. सरकार की भूमिका बस इतनी होती है ये गरीब लोग विवाह समारोह का खर्च उठा पाने में अक्षम लोगों को इस समारोह के आयोजन के जरिये मदद करना. मान लिया जाय कि कोई युवती गर्भवती ही है और जो युवक उससे विवाह रचाना चाहता है उससे युवती के गर्भवती होने से कोई फर्क नहीं पड़ता तो क्या प्रशासन को यह अधिकार है कि युवती के गर्भवती होने का हवाला दे कर उन्हें विवाह करने से रोका जाय. इसी तरह ऐसे भी मामले मध्यप्रदेश में पहले आ चुके है जिनमें विवाह पूर्व ही युवक व युवती के बीच शारीरिक संबंध बन गये, बाद में उन्होंने शादी की. यदि ऐसा होता भी है तो गुनाह क्या है. दूसरी ओर राज्य महिला आयोग की सदस्य सुषमा जैन का कहना भी काफी हद तक सही है कि पैसे के लालच में कई गरीब परिवार अपने बच्चों की दोबारा दिखावटी शादी करते है. वस्तुतः वह जोड़ा काफी पहले वैवाहिक बंधन में बंध चुका होता है लेकिन सरकार से मिलने वाली आर्थिक मदद के लालच में वह जोड़ा दोबारा शादी रचाना पहुंचता है. इसमें युवतियों के गर्भवति होने का मामला बड़ा ही समान्य है. मामला भले ही कौमार्य परीक्षण का न रहा हो लेकिन इन युवतियों के किसी भी प्रकार की कोई चिकित्सकीय जांच की उस समय कोई जरुरत नहीं है. शासन व प्रशासन को इस पर विचार करना होगा. इससे न केवल वैवाहिक बंधन में बंधने वाले जोड़े के रिश्ते खत्म होंगे बल्कि सामाजिक ताना-बाना भी छिन्न-भिन्न हो सकता है. सरकार ऐसी कोई ठोस पहल क्यों नहीं करती कि राज्य की जनता की आर्थिक स्थिति इतनी सक्षम हो जाये कि उन्हें सरकारी खैरात की जरुरत न पड़े. सरकार को शहडोल में हुए सामूहिक विवाह समारोह के संबंध में उठे आरोपो की गंभीरता से जांच कराना चाहिए और यदि कौमार्य परीक्षण जैसे अमर्यादित कोई कृत्य हुआ है तो संबंधित दोषियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करनी चाहिए. सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप और बयानबाजी के माध्यम से इस घटना से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए. महिला संगठन सिर्फ अपनी उपस्थिति दर्ज न कराये बल्कि इस मामले के संच को सामने लाये तभी वे खुद को महिलाओं के हितों के प्रति समर्पित कह पायेंगी, अन्यथा इस तरह की घटनाएं होती रहेंगी और इसे हमलोग शर्मनाक घटना कह कर इससे अपना पल्ला झाड़ते रहेंगे.
darasal mudda hi vivadon ka hai to baki kya kahne
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