गुरुवार, 30 जून 2011

यादों के झरोखे में रहोगी चवन्नी

चवन्नी, आज तुम साथ छोड़ रही हो. अपनी 57 साल की उम्र में से तुमने लगभग 30 साल तक तो मेरा साथ दिया ही. भलेहीं इधर चार -पांच वर्षों से रहने के बावजूद भी तुम कुछ अलग-थलग थी. गलती भी हमारी ही थी कि तुम्हारी पूछ कम कर दी थी, लेकिन क्या कहूं? जमाने के साथ तुम कदमताल नहीं कर पा रही थी.
हालांकि तुम्हारी उम्र कोई बहुत ज्यादा नहीं थी लेकिन बढ़ती महंगाई रूपी प्रदूषण ने तुम्हें 57 साल की उम्र में ही बुजुर्ग बना दिया और तुम लगातार बूढ़ी और कमजोर होती गई. डॉक्टर (रिजर्व बैंक) ने तुम्हारी आयु तय कर दी. आज की. 30 जून की. और आज तुम चल बसी. हमारी जेब में फिलहाल न हो कर भी न जाने क्यों आज तुम मेरे सबसे करीब लगी. बिल्‍कुल उन दिनों की तरह, जब कोलकाता की सड़कों पर सरकती ट्रामों में सफर के लिए बड़े शान से कंडक्टर को तुम्हें थमा दिया करता था.


पुरानी स्मृतियां कभी सुखद तो कभी मन को कचोटने वाली होती है. तुम्हारा जाना मन को कचोट रहा है. स्कूल जाते वक्त पापा एक रुपये का फटा-पुराना नोट या फिर सिक्का दे दिया करते थे. लेकिन तुम्हारा प्रेम ही था जो मुझे पान की गुमटी तक दौड़ा देता था. वहां से मैं चार चवन्नी ले लेता था.
दो चवन्नी के सिक्के ट्राम या बस का किराया देने के लिए तो एक आलू काटा और एक खट्टी बेर के लिए. तुम्हारी बदौलत, ट्राम की खिड़कियों से दौड़ती भागती महानगरीय जिंदगी को निहारना, बसों के दरवाजे पर लटक कर किलोल करना और फिर हुगली नदी के फेरीघाट से उस पार जाना, यादों में बसा है. एक लंबे समय तक तुम साथ-साथ रही.


एक बात और याद आती है चवन्नी- कभी गांव जाता तो तुम जरूर मेरे साथ होती, किसी न किसी जेब में. मोकामा का पुल पार करते वक्त या फिर पटना के गांधी सेतु से गंगा के हवाले तुम्हें करने में बड़ा आनंद आता. हालांकि यह मां ने ही सिखाया था. यह सोच कर कि गंगा मईया मेरे अगले जन्म को भी धन्य-धान्य से पूर्ण कर देगी, अगर आज जो तुम्हें उनके हवाले किया तो. इतने साथ-साथ रहे हम, लेकिन सच कहूं तो किसी ने मुझे आज तक चवन्नी छाप नहीं कहा.
हालांकि 'चवन्नी छाप' जुमला तब अस्तित्व में आया जब तुम्हारी कद्र धीरे-धीरे कम हो रही थी. तुम्हारा जाना सच बहुत खल रहा है, बावजूद इसके तुम्हें बचाने की कोई हूक दिल में नहीं उठ रही. आखिर तुम्हें बचा कर भी क्या कर लेंगे. अब तुम स्मृतियों में रह जाओगी. हालांकि एक और रास्ता है यादों में बसे रहने का - मेरा बेटा भी चवनियां मुस्की मारता है. भले ही पापा की तरह अपने बेटे को चवन्नी न दे सकूं लेकिन उसके होठों पर तुम्हारी मेहरबानी बनी रहे. यह आशीष तुम जरूर दे जाना.
अलविदा चवन्नी.

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