शुक्रवार, 17 जून 2011

जय हो बाबागीरी, जय हो गांधीगीरी की

अपने देश में बाबागीरी को कभी सकारात्मक लहजे में नहीं लिया गया. बाबागीरी की साख हमेशा स्याह पर्दे के भीतर रही, लेकिन भला हो कि बालीवुड के धुरंधर संजू बाबा ने रुपहले पर्दे पर गांधीगीरी दिखा कर 'गीरी' की साख को उबारा. इस पर जनमानस की अवधारणा बदली. दिन बीते, साल बीते, उसके बाद फिर भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ और काला धन को राष्‍रीय संपत्ति घोषित करने को लेकर बाबागीरी शुरु हो गई, बाबा के साथ चेले-चेलियों की जमात भी चिमटा बजाते सड़क पर नुक्कड़ नाटक करती हुई सामने आई.
सरकार के माथे पर पसीना चुहचुहाया, गरमी का जो मौसम था. लेकिन इस गरमी का निदान एयरकंडिशंड कमरे से बाहर था. बाबा के प्रति श्रद्धा से लबालब सरकार ने पहले तो बाबा की अगुआनी, मनुहार और आतिथ्य सत्कार के लिए उड़न खटोला विश्राम स्थल पर अपने चार-चार सिपाहसलार भेजे, मखमली कालीन पर खड़ाऊ चटकाते बाबा सबको आशीर्वाद दिये लेकिन कालाधन वापस लाने की छूट देने से टका सा जवाब दे दिया. यह सुनते ही सांप-संपेरों के देश की जनता और बाबा के चेलो-चेलियों ने चिमटा बजा फिर कहा- जय हो बाबा!
अब बाबा की बाबागीरी और रफ्तार से आगे बढ़ी. दिल्ली के रामलीला मैदान में. शायद भगवान राम इस मैदान में कभी नहीं आएं हो लीला दिखाने लेकिन बाबा हंगामी स्टेज लाइटिंग और साज-सज्जा उपकरणों से लैस अनेकानेक संत, मुनियों और मौलानओं की टोली के साथ अनशन लीला का साक्षात दर्शन कराया. सरकार दसों नख जोड़ कर बाबागीरी और बाबा की लीला देख भजन कीर्तन करती रही लेकिन बाबा ने भजन-कीर्तन में मग्न सरकार को घास नहीं डाली. फिर क्या था. सरकार बाबा को बाबागीरी से बढ़िया पासा खेलने का न्योता दिया, बाबा ने भी पासा फेंका, सरकार ने भी फेंका, बाबा हुए पस्त, बाबा की बाबागीरी भी हुए नष्ट. सरकार ने गिरगिट की तरह रंग बदला, रात … आधी रात को सरकार ने बाबा और बाबा के चेलो-चेलियों को दौड़ा कर दिल्ली से कर दिया तड़ीपार. हांफते, कांपते बाबा पहुंचे हरिद्वार, फिर शुरू की बाबागीरी लेकिन अंजाम के ढाक के तीन पात.
हालांकि बाबा के पहले भ्रष्टाचार पर गांधीवादी अन्ना हजारे ने सरकार के खिलाफ गांधीगीरी दिखाई थी, देश ने सरकार को कोसा था, जनलोकपाल को सराहा था. टीवी चैनलों ने 24*7 अन्ना की गांधीगीरी को कवर किया. देश की नई पीढ़ी अन्ना में गांधी को देखने लगी. मध्यवर्ग सड़कों पर आया. इंटरनेट पर कंमेंटो की झड़ी लगी. सरकार झुकी, जनता रुकी, बातचीत आगे बढ़ी. फिर आई खटास अन्ना के सिपाहसलार पारदर्शी के हिमायती तो सरकार के सिपाहसलार जनहित के लिए सब कुछ सार्वजनिक न करने के पैरोकार. फंस गई पेंच, अन्ना ने फिर दी धमकी शुरू कर देंगे, गांधीगीरी.

सरकार बाबागीरी-गांधीगीरी से सहमी-सकुचाई-भयभीत हो कह रही, चोलबे ना...बाबागीरी-गांधीगीरी, चलेगी तो बस सरकारगीरी. क्या पता कब तक चले 'गिरी सरकार.' देखते रहिए...देखते रहिए.

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