सोमवार, 13 दिसंबर 2010

नई जंग, पुराने योद्धा

अंग्रेजों की "फूट डालों, राज करों" की नीति उनके जाने के बाद भी भारतीय राजनीति में प्रासंगिक बना रहा. और यह नीति पश्चिम बंगाल में वाममोर्चा के लिए संजीवनी बनी रही. जब ममता बनर्जी ने तात्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु के कार्यकाल में सरकार का मृत्युघंट बांधा था, तब भी यहीं संजीवनी वाममोर्चा को नया जीवन देने में कामयाब रही. लेकिन पिछले 34 वर्षों में बंगाल में बहुत कुछ बदला है. वामो का जनाधार खिसका है. नंदीग्राम, सिंगुर और लालगढ़ से लेकर नानूर तक की घटनाओं ने वाममोर्चा को कमजोर किया है, साख को मटियामेट किया है. सूबे में 2011 के मध्य में विधानसभा चुनाव होने हैं, तैयारियां शुरू हैं. इसके पहले वाममोर्चा किसी न किसी बहाने विपक्ष तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस के बीच होने वाले गठजोड़ में फूट डालने में कामयाब हो जाती थी और सिक्का चल जाता था लेकिन हाल ही में बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे ने बता दिया है कि शायद वाममोर्चा की पुरानी नीति अब काम की नहीं रही. इसके अलावा 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले की वजह से सांसत में फंसी कांग्रेस फिलहाल अपने बूते चुनावी जंग में कुछ बेहतर कर पाएगी, इसकी उम्मीद कांग्रेसी आलाकमान को भी नहीं है, दूसरे ऐसी स्थिति में केंद्र की यूपीए सरकार को ममता के ममत्व की जरुरत कुछ ज्यादा ही पड़ सकती है. इस राजनीतिक गणित को समझ कर पश्चिम बंगाल में वाममोर्चा नए सिरे से अपनी चुनावी रणनीति बनाने में जुटी है.

राज्य के वाममोर्चा के सामने एक दिक्कत यह भी है कि पिछली घटनाओं की वजह से अलोकप्रिय हो चुके वामदलों के कई युवा तुर्क इस बार चुनाव लड़ने से ही मना कर बैठे हैं. हद तो यह है कि मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने भी माकपा पोलित ब्यूरो से चुनाव नहीं लड़ने की इच्छा जताई थी, लेकिन पार्टी की केंद्रीय कमेटी ने उनका यह आग्रह मानने से इनकार कर दिया. इन सारे राजनीतिक घटनाक्रमों के बाद माकपा नीत वाममोर्चा ने अगामी विधानसभा चुनाव में 60 और 70 के दशक के मजे-मजाए कट्टर और बूढ़े कम्युनिस्टों को मैदान में उतारने की तैयारी की है. इन बूढ़े शेरों का नेतृत्व खुद मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य करेंगे. 60 के दशक में वामपंथी आंदोलन के अग्रणी नेता अशोक घोष, क्षीति गोस्वामी, मंजू कुमार मजूमदार और घटक दलों के अन्य पुराने वयोवृद्ध कामरेडों की यह टीम तृणमूल कांग्रेस की उस युवा फौज को टक्कर देगी, जिसे तृममूल सुप्रीमो ममता बनर्जी लगातार धार देने में जुटी हैं. जबकि, इतने दिनों के अंदर वाममोर्चा में बड़े नेताओं के सामने दूसरी पंक्ति के नेता उभर नहीं सके. अब जब कि चुनाव भी हाईटेक हो गये हैं. युवा मतदाताओं तक अपनी बात पहुंचाने और उन्हें अपनी ओर लाने के लिए लगभग सभी दलों द्वारा धड़ल्ले से इंटरनेट का उपयोग किया जा रहा है, वैसी स्थिति में ये बुजुर्ग कामरेड जिन्हें इंटरनेट का ककहरा तक नहीं आता, क्या कमाल करेंगे? इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है.

यहां इस बात का उल्लेख करना जरुरी हो गया है कि पिछले विधानसभा चुनाव के बाद तृणमूल कांग्रेस ने विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल होने के लिए जरुरी 30 विधायकों का आंकड़ा भी जैसे - तैसे पूरी की थी. वही तृणमूल कांग्रेस इस बार वाममोर्चा को करारी टक्कर देने या कहे कि लाल-गढ़ को ढहाने की कुवव्त में दिख रही है.

वाममोर्चा के फारवर्ड ब्लॉक के राष्ट्रीय महासचिव देवब्रत विश्वास स्वीकरते हैं कि वाममोर्चा की तुलना में तृणमूल कांग्रेस में युवा नेताओं की तादाद अधिक है. युवा नेताओं की बात युवा मतदाता वर्ग पसंद करते हैं.

गौर करने वाली बात यह है कि पिछले 34 वर्षों के वाममोर्चा शासनकाल में माकपा को पहली बार गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. मौजूदा डिजीटलाईज हो चुके चुनावी जंग में अस्त्र उठाने वाला उनके पास कोई नया योद्धा नहीं है, जिसके बूते वाममोर्चा चुनावी फतह कर सके या लोगों का विश्वास फिर से जीत सके. व्यवस्थित और सुव्यवस्थित ढंग से चुनावी किला फतह करने वाली माकपा इस बार हाताश नजर आ रही है. अब इसे मजबूरी कहें या फिर राजनीतिक अस्तित्व की रक्षा- खैर, जो भी हो- दरक चुके किले को बचाने के लिए जंग के पहले वाममोर्चा का नेतृत्व करने वाली माकपा हथियार डालने को तैयार नहीं है. सिंगुर और नंदीग्राम में भूमि विवाद से वाममोर्चा की साख पर बट्टा लगने के बाद पार्टी में मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य को हटाने की सुगबुगाहट शुरू हुई थी, लेकिन भट्टाचार्य की स्वच्छ छवि को देखते हुए माकपा की केंद्रीय कमेटी ने बंगाल में नेतृत्व परिवर्तन की संभावना को सिरे से खारिज कर दिया. फिलहाल बंगाल में माकपा को बुद्धदेव का कोई विकल्प नजर नहीं आ रहा है, क्योंकि बुद्धदेव के नेतृत्व में ही पार्टी ने पिछले दो विधानसभा चुनाव पूर्ण बहुमत के साथ जीता है. इस बात को ध्यान में रख कर अभी से ही मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य का जिलों का दौरा शुरू कर दिया गया हैं. वाममोर्चा के चेयरमैन विमान बोस एक के बाद एक आंदोलन की कार्यसूची घोषित कर रहे हैं. पार्टी के तेज तर्रार नेता गौतम देव ने आक्रामक तेवर अपना रखा है. मुस्लिम मतदाताओं का मन जीतने के लिए भूमि सुधार मंत्री अब्दुर्रज्जाक मोल्ला और मोहम्मद सलीम को विशेष रूप से सक्रिय किया गया है.



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