बुधवार, 7 अप्रैल 2010

क्या है नक्सलियों का उद्देश्य?


श्रीराजेश
क्या भारतीय नक्सलवाद नेपाली माओवादियों की राह पर चल रहा है? अब यह प्रश्न उठने लगा है. पिछले दो वर्षों के दौरान नक्सलियों ने जिस कदर हिंसा का तांडव मचाया है, उससे यह बात उभर कर सामने आने लगी है. लंबे अर्से से यह कहा जाता है कि आजादी के बाद से ही देश के जंगली इलाकों और आदिवासी बहुल क्षेत्रों की घोर उपेक्षा की गई और यहां के विकास पर ध्यान नहीं दिया गया. जिसकी वजह से यहां के लोगों में असंतोष घर कर गया और ये अपने हक के लिए माओवाद की राह पकड़ बंदूक थाम लिए. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता लेकिन मामला इतना साफ भी नहीं लगता. अब नक्सली आंदोलन को शुरू करने वाले कई नक्सली नेताओं की ओर से भी बयान आने लगे हैं कि जब यह आंदोलन शुरू हुआ था तो इसके मूल में था कि भले ही नक्सली अपने हक के लिए हथियार का इस्तेमाल करेंगे लेकिन इनके हथियार बेकसूरों के खून से नहीं रंगेंगे. लेकिन हो इसके उल्टा रहा है. दंतेवाड़ा कांड अब तक नकसलियों द्वारा अंजाम दी गई सबसे बड़ी घटना है लेकिन इसकी परिणति क्या होगी. नक्सली आंदोलन और नक्सलवाद के जानकारों का कहना है कि भारतीय नक्सली वर्ष 2050 तक भारत की सत्ता पर कब्जा जमाने के उद्देश्य को लेकर चल रहे हैं. इसी उद्देश्य के तहत देश के 17 राज्यों के 220 जिलों में अपनी पैठ बना चुके हैं. यदि नेपाल के माओवादियों के इतिहास पर नजर डाले तो बात और साफ हो जाती है. नेपाल में किस तरह लाल दस्ते ने सत्ता पर अपनी पकड़ कायम की यह किसी से छिपा नहीं है. लगभग उसी रास्ते पर भारतीय नक्सली भी अग्रसर हैं. अब सवाल उठता है कि क्या भारत सरकार को नक्सलियों के इस मंसूबे के बार में पता है या नहीं. यदि पता है कि सरकारी तंत्र कर क्या रहा है और यदि नहीं है, तो सरकारी खुफिया एजेंसियों का काम क्या है? पिछले दिनों पश्चिम बंगाल के लालगढ़ जाकर गृहमंत्री पी. चिंदंबरम में नक्सलियों को कायर करार देते हुए उन्हें बातचीत करने का न्यौता दिया. फिर कहा कि दो-तीन वर्षों के भीतर सरकार देश से नक्सलियों का नामोनिशां मिटा देगी. इस परस्पर विरोधाभासी बयानों का निहितार्थ क्या है? हालांकि ठीक उसी दिन नक्सलियों ने उड़ीसा में लैंडमाइन विस्फोट कर 10 लोगों की जान ले ली. उसके बाद दंतेवाड़ा में इतनी बड़ी घटना को अंजाम दिया.
जिस देश में अर्द्ध सैन्य बल सरकार से नक्सलवादियों पर हमला करने की इजाज़त मांगे, तब तक उस पर हमला हो जाएं, और वे अपनी जान गंवा दें, तो स्थिति की भयावहता का अनुमान लगाया जा सकता है. यह भी विचारणीय है कि क्यों ऐसी स्थिति आई कि देश के वंचित तबकों ने जगह-जगह हथियार उठा लिए और हमारी पुलिस, अर्द्ध सैन्य बल उनका मुक़ाबला नहीं कर पा रहे हैं? हम पाक पर आरोप लगाते है कि वह कश्मीर व देश के विभिन्न हिस्सों में आंतकवाद को शह दे रहा है इसलिए भारत में आतंकी वारदातों की संख्या बढ़ी है लेकिन आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बंगाल, बिहार में क्या हो रहा है? सारे उत्तर-पूर्वी राज्य, असम सहित उग्रवादियों के क़ब्ज़े में हैं. इन प्रदेशों के बहुत से क्षेत्रों में शाम होते ही लोग बाहर निकलना बंद कर देते हैं. इन क्षेत्रों को नक्सलवादी प्रभाव वाले क्षेत्र कहा जाता है, ये कौन लोग हैं जिन्होंने सरकार के ख़िला़फ हथियार उठा लिए हैं, जो जीने से ज़्यादा मरने में यक़ीन करते हैं. शिक्षा पाए अच्छे परिवारों के लड़के-लड़कियां, बड़े प्रतिष्ठित स्कूलों की पैदाइश एक अच्छी ख़ासी संख्या में गांवों में नक्सलवादियों के साथ घूम रही है और कह रही है कि व्यवस्था बदलो. व्यवस्था बदलो का मतलब सरकार क्यों नहीं समझ रही है? हमारे गृह मंत्री नक्सलवाद को हथियारों से कुचलना चाहते हैं, वे कुचल सकते हैं, कम से कम कोशिश कर सकते हैं. आज तक का अनुभव बतलाता है कि ऐसी कोशिशें जब भी हुई हैं, निर्दोषों का ख़ून ज़्यादा बहा है. एक मरता है, चार खड़े हो जाते हैं. हमारे प्रधानमंत्री नक्सलवाद को सबसे बड़ा ख़तरा बताते हैं, पर अर्थशास्त्र के ज्ञाता यह भूल जाते हैं कि इसके कारण भी तो उन्हें बताने हैं. वे बता नहीं पाएंगे, क्योंकि दरअसल जिस अर्थशास्त्र के वे ज्ञाता हैं, वही अर्थशास्त्र इस समस्या की जड़ है.
खैर सरकार को योजना आयोग द्वारा 2008 में जारी की गई उस रिपोर्ट पर गंभीरता से पहल करनी होगी जिसमें यह कहा गया है कि नक्सलवाद पर काबू पाने के लिए सरकार दो दिशाओं से एक साथ काम शुरू करने होंगे. एक तो उन इलाकों के विकास के लिए सिद्दत से काम करना होगा वहीं खुफिया तंत्र को और मजबूत बना कर नक्सलियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी होगी. इन दोनों कार्यों के समानांतर लोगों में जागरुकता लाने और उनके नागरिक अधिकारों की बहाली की दिशा में सार्थक प्रयास करनी होगी. दरअसल, सरकारी योजनाएं असफल, सरकार का विकास अधूरा, ग़रीब को अर्थव्यवस्था में हिस्सा ही नहीं देना, यही अर्थशास्त्र लोगों को बांटता है. यह ज़मीन है जो नक्सलवाद को पैदा करती है. कृपया इसे सरकार खत्म करे, नक्सलवाद भी स्वतः खत्म हो जाएगा.

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