गुरुवार, 25 जून 2009

लाल सरकार को लालगढ़ का लाल सलाम

श्रीराजेश
लालगढ़। लाल दस्ता के साथ और लाल सरकार के खिलाफ। पश्चिम बंगाल से वाम शासन के दरकने का प्रतिक। 1976-77 की पुनरावृति।
राज्य की सत्ता में आने के पूर्व वामपंथियों सर्वहारा वर्ग के उत्थान के लिए दो मोर्चो पर आंदोलन चल रहा था। एक तो माकपा के नेतृत्व में वामपंथ की पूंजीवाद और कामगारों के हक की लोकतांत्रित ढंग से आंदोलन चल रही थी और वहीं राज्य की राजधानी कोलकाता से तकरीबन 550 किलोमीटर दूर जलपाईगुड़ी के नक्सलबाड़ी गांव में चारू मजूमदार और सन्याल के नेतृत्व में चरम वामपंथियों ने सशस्त्र आंदोलन का विगुल बजा दिया था। इसका राष्ट्रव्यापि प्रभाव पड़ा। माकपा को सत्ता तक पहुंचाने में चरम वामपंथियों और अब नक्सली के रूप में कुख्यात संगठनों का आहम योगदान है। राज्य की सत्ता पर अप्रत्यक्ष रूप से कब्जा जमाये रखने की मंशा से नक्सलियों ने माकपा को सत्तासीन किया लेकिन बाद में माकपा नक्सलियों से दूरी बनाने लगी और फिर उन्हें जेलों में ठूसना भी शुरू कर दिया। यहीं से माकपा व नक्सलियों के बीच ठन गयी.
32 वर्ष पूर्व राज्य की सत्ता में आने के लिए माकपा और उसके सहयोगी वाम दलों ने राज्य के पिछड़ेपन, औद्योगिक रुग्णता, कानून व्यवस्था की लचर स्थिति, खेतीहर मजदूरों और कामगारों के विकास, जमींदारों के अत्चार को खत्म करने के मुद्दे उठाये। आज 32 वर्ष बीत गये। इतने लंबे कार्यकाल की उपलब्धी के रूप में राज्य सरकार के पास सिफर् भूमि सुधार है। इसके बावजूद जिन मुद्दों को उठा कर माकपा सत्तासीन हुई थी, वह जस की तस बरकरार है और तो और राज्य के कई हिस्सों में स्थिति और बदहाल हो गयी है। इन 32 वर्षों में सर्वहरा वर्ग की मसीहा कमयुनिस्ट सरकार के कई रूप सामने आये हैं। नंदीग्राम में हत्यारी सरकार, सिंगूर में अत्याचारी सरकार और अब लालगढ़ में निकम्मी सरकार। ध्यान देने वाली बात है कि आदीवासी बहुल क्षेत्र लालगढ़ के जंगली क्षेत्र में अच्छी सड़कें, नई-नई पुलिया, गांवों में पक्के स्कूल भवनों और कहीं-कहीं हैंडपंप भी है लेकिन यह चीजें जिनकी व्यवस्था करने की जिम्मेदारी सरकार की है, उसे नक्सली संगठनों ने किया है। पहले से ही लालगढ़ के आदीवासियों में राज्य की निकम्मी सरकार से प्रति आक्रोश तो भरा ही था लेकिन नक्सलियों के खुले समर्थन के बाद यह आक्रोश की चिंगारी भड़क गयी, लालगढ़ लाल सरकार की लाल सलाम करने की ठान ली।

राज्य में माकपा की जड़े कमजोर होने लगी है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वहां क्रांग्रेस या फिर तृणमूल कांग्रेस मजबूत हो रही है। माकपा के कैडर स्वयं को ठगा महसूस करने लगे हैं और उन्हें रूस की वोलशेविक क्रांति के दौरान हुए नरसंहार और दशकों बाद जमीन के नीचे दबे लाखों कंकालों के मिलने का दृश्य दिखने लगा है और माकपा के तिलस्म उनके नजर के सामने से टूटने लगा है।

3 टिप्‍पणियां:

  1. एक सही मूल्यांकन!
    लेकिन ये वर्डवेरीफिकेशन हटाएं। यह टिप्पणी का बैरी है।

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  2. आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . आशा है आप अपने विचारो से हिंदी जगत को बहुत आगे ले जायंगे
    लिखते रहिये
    चिटठा जगत मे आप का स्वागत है
    गार्गी

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