मंगलवार, 20 नवंबर 2012

राहुल की राह

एक बार राहुल गांधी से पूछा गया कि आपका धर्म क्या है? तो उन्होंने छूटते ही जवाब दिया- भारतीय तीरंगा. यह जवाब उस समय का है जब राहुल लंदन से वापस आये थे और राजनीति में सक्रिय नहीं थे. एक वैसे परिवार के युवा सदस्य से इस तरह का उत्तर अपेक्षित था, जो कि भारतीय राजनीति का बीते सौ वर्षों से धुरी रहा है. यह जवाब राहुल के परिपक्व सोच को दर्शाता है और उन आरोपों को खारिज करता है- जो कि यदा-कदा उनके राजनीतिक अपरिपक्वता को लेकर लगते रहे हैं. एकांतप्रिय और कम बोलने वाले राहुल की राजनीतिक दूरदर्शिता को आरती रामचंद्रन ने अपनी किताब ‘डिकोडिंग राहुल गांधी ’ में बड़ी संजीदगी से रेखांकित किया है. इसका उदाहरण देते हुए रामचंद्रन ने उस साक्षात्कार का उल्लेख किया है, जिसे राहुल ने वर्ष 2010 में अपने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के सहपाठी ऐशले लैमिंग को दिया था, इस साक्षात्कार में राहुल ने बड़ी स्पष्टता के साथ कहा था कि भारतीय शिक्षा प्रणाली ब्रितानी शिक्षा प्रणाली से 800 साल पीछे है. शिक्षा प्रणाली को आधुनिक बनाने के लिए ज्ञान पर एकाधिकार खत्म करना होगा. छात्र विभिन्न स्रोतों से ज्ञान अर्जित कर सकें और वे स्वयं सूचना के प्रतिस्पर्धी स्रोतों का मूल्यांकन कर निर्णय ले सकें. कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से विकास अध्ययन में एमफिल करने वाले राहुल वहां पढ़े गए आर्थिक सिद्धांतों से काफी प्रभावित थे. वे आर्थिक शब्दावलियों के प्रयोग में सिद्धहस्त तो हैं ही साथ ही वह अपनी राय के पक्ष में तर्क देने में भी सक्षम हंै. आपूर्ति और मांग की समस्याओं के मद्देनजर दलितों और महिलाओं के लिए, जिनका कि वह समर्थन करते हैं, इस मुद्दे पर वह लंबी व तार्किक ढंग से अपनी बातों को रखते हैं. स्क्वैश और मुक्केबाजी के शौकीन राहुल की निजी जिंदगी एक आवरण के पीछे है. इस आवरण को न तो उनके परिवार ने कभी सरकाने की कोशिश की और न ही राहुल ने स्वयं. राहुल तो यहां तक मानते हैं कि किसी भी व्यक्ति की निजता उसकी व्यक्तिगत थाती होती है और उसे आवरण में ही रहने दिया जाना चाहिए. हालांकि वे जिस पारिवारिक पृष्ठभूमि से हैं, उसकी वजह से उनकी निजी जिंदगी किसी सेलिब्रिटी से कम नहीं है और उसका कारण भी है, वे भी एक राजनीतिक सेलिब्रिटी हैं. राजनीतिज्ञों के साथ विवादों का चोली-दामन का रिश्ता होता है और इस रिश्ते की वजह से राहुल भी विवादों से नहीं बचे. कभी अपने व्यवसाय को लेकर मीडिया के निशाने पर आए तो कभी अपने प्रेमप्रसंग को लेकर. 40 वर्षीय राहुल मानते हैं कि मन में आए बुरे ख्याल आपके सफर को गलत दिशा में मोड़ देता है. इसलिए बुरे ख्याल को दूर रखने के लिए कंपास रूपी सकारात्मक विचारों के सृजन को बल देना चाहिए. इसकी बानगी भी उनके कथन से ही मिल जाती है. वर्ष 2010 के नवंबर महीने में वह एक स्कूल के विज्ञान मेले के उद्घाटन में गए थे. वहां उन्होंने स्कूली छात्रों से बातचीत की. बातचीत में वह उन छात्रों में सकारात्मक विचार सृजित करने की कोशिश करते दिखे. इसी कोशिश के मद्देनजर उन्होंने छात्रों से कहा था कि उन्हें अपने बचपन के दौरान अंधेरे से भय लगता था, और इस भय का कारण था कि वह मानते थे कि अंधेरे में बुरी आत्माएं और भूत-पिसाच रहते हैं. इस बात को उन्होंने कभी अपनी दादी इंदिरा गांधी से कही. तब उनकी दादी ने उन्हें कहा कि क्या उन्होंने किसी बुरी आत्मा या फिर किसी भूत को अंधेरे में देखा है, तब राहुल ने ना में जवाब दिया. फिर उनकी दादी ने कहा कि पहले अंधेरे में जाओ और देखो कि वहां सही मायने में कुछ है या कि यह तुम्हारा केवल भ्रम है. और राहुल डरते-डरते अपने बंगले के अंधेरे बगीचे में गए, लेकिन उस अंधेरे में उन्हें ऐसा कुछ भी नहीं दिखा, जिससे कि उन्हें डर लगे. और सारी भ्रांतियां दूर हुईं. वास्तव में राहुल अपना करियर एक मैनेजमेंट कंसल्टेंट के रूप में निखारना चाहते थे. इस लिए उन्होंने लंदन में माइकल पोर्टर की कंपनी मॉनिटर के लिए काम किया. हालांकि उस कंपनी के लिए काम करते हुए उन्होंने अपने वास्तविक पहचान को छिपाए रखा. बाद में इसके बारे में अनाधिकृत स्पष्टीकरण आया कि भारत के सबसे बड़े राजनीतिक रसूख वाले परिवार के सदस्य होने की वजह से व्यावसायिक क्षेत्र में इसका गलत फायदा उठाया जा सकता था. बाद में लंदन से वापसी के बाद 2002 में राहुल ने बैकॉप्स नाम की एक कंसल्टेंसी कंपनी स्थापित की. इस कंपनी को इंजीनियरिंग डिजाइन आउटसोर्सिंग कंपनी के रूप में बाजार में स्थापित किया गया. हालांकि जिस तरह गांधी परिवार की निजता को गोपनीय रखा जाता है, वही रवैया इस कंपनी और राहुल के बीच अपनाया गया. पहली बार लोग तब इस कंपनी के बारे में जाने, जब मुंबई के दैनिक मिड-डे ने राहुल और बैकॉप्स के संबंधों को उजागर किया. बाद में इस कंपनी को मिले कई बड़ी परियोजनाओं के ठेके को लेकर बवाल भी हुआ. जबकि राहुल ने कंपनी के राजस्व को एक लाख डॉलर से कम बता कर इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया. जैसे -जैसे राजनीति में उनकी सक्रियता बढ़ती गई, वह कंपनी के कामकाज से दूर होते गए. उन्होंने 2009 में कंपनी के निदेशक पद से इस्तीफा दे कर अपनी बहन प्रियंका गांधी को निदेशक के तौर पर नियुक्त कर दिया, अब राहुल का इस कंपनी से कोई रिश्ता नहीं रह गया है. 40 वर्षीय राहुल के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने आजीवन कुंवारा रहने का निर्णय किया है लेकिन उनकी प्रेम कहानी को कई अटकलों का सामना करना पड़ा है. भले ही राहुल को राजनीति की विरासत सोने की थाल में परोसी मिली हो. लेकिन यह राह इतना आसान नहीं था. एक तरफ चापलूस और चाटुकार किस्म के लोगों का घेरा तो वहीं दूसरी ओर देश को, देश की जनता को देखने और समझने की जरुरत थी. युवा कांग्रेस में सक्रिय होने के बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश सहित देश के विभिन्न हिस्सों का दौरा किया साथ ही हांसिये पर रह रहे लोगों के साथ बातचीत कर उन्होंने देश की जमीनी हकीकत को जानने की कोशिश की. चाहे उत्तर प्रदेश की दलित महिला के घर रोटी खाने की बात या फिर भट्टा-पारसौल का आंदोलन जिसे लेकर मीडिया में काफी चर्चा हुई लेकिन यह उनके कैंब्रिज में अध्ययन के दौरान अपनाई गई जीवन शैली को प्रतिबिंवित करता है. राहुल कहते भी हैं कि मैने कभी आरामदेह जीवनशैली नहीं अपनाई. लंदन में नौकरी के दौरान भी मैं लंबे समय तक काम करता था. असल में कठिन परिश्रम की प्रवृति मेरी रगों में है और मैं मानता हूं कि यही प्रवृति हमें राजनीति में भी बनाए रखनी होगी. राहुल उतार-चढ़ाव भरे राजनीतिक दौर में अपनी खुद की एक पहचान बनाते हुए कांग्रेस में बड़ी जिम्मेदारी के निर्वाह के लिए तैयार हैं. वह पार्टी की भावना और समर्थन के लिए पार्टी के कार्यकर्ताओं के प्रति आभार जताते हुए यह वादा भी करते हैं कि उन्हें कभी नतमस्तक नहीं होने देंगे. यह वादा उनके जज्बातों और उनकी कल्पनाशीलता को मजबूती से स्थापित करता है. (नई दिल्ली से प्रकाशित मासिक पत्रिका प्राइड ऑफ बॉर्डर लाइन के नवंबर अंक में प्रकाशित)

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