शनिवार, 16 अप्रैल 2011

‘जनहित के लिए बार-बार करुंगा सरकार को ब्लैकमेल’


भ्रष्टाचार के खिलाफ देशभर में हुए आंदोलन से नायक बन कर उभरे 76 वर्षीय गांधीवादी अन्ना हजारे की आंखों में एक पुलकित भारत का सपना है. उनका मानना है कि बगैर संघर्ष के हम गांधी के स्वराज को हासिल नहीं कर सकते और इसमें सबसे बड़ी बाधा भ्रष्टाचार है,  देश में स्वायत्त लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्तों की जरूरत है. आंदोलन के उपरांत अन्ना हजारे से हुई मेरी बातचीत का मुख्य अंश:-

आंदोलन के समाप्त होते ही कई तरह के विवाद सामने आए हैं. इन विवादों की वजह क्या है?
देखिए, कहीं कोई विवाद नहीं है, लोकतंत्र में विचारों की अभिव्यक्ति की छूट है. हां कुछ बातों पर मतभेद थे, लेकिन वह संवादहीनता की वजह से था और अब वह खत्म हो चुका है.
 
आपके संबंध में कहा जा रहा है कि आपने सरकार पर दबाव डाल कर उसे ब्लैकमेल किया है?
जनहित के लिए मुझे सरकार पर दबाव बनाना पड़ा है और यदि सरकार ब्लैकमेल हुई है तो ऐसे कार्यों के लिए मैं सरकार को बार-बार ब्लैकमेल करना चाहूंगा.
 
आगे की रणनीति?
अभी एक समिति बनानी है. 16 अप्रैल से विधेयक का नया प्रारूप बनना शुरू हो जाएगा.  हालांकि मैं यह साफ कर देना चाहता हूं कि आंदोलन खत्म नहीं हुआ बल्कि अभी तो शुरुआत है. इसके अगले चरण में राजनीतिक सुधार का मामला है, जिसके तरह राइट टू रिकॉल, नेगेटिव वोटिंग शामिल है.
 
ड्रॉफ्ट समिति में पिता-पुत्र को रखे जाने पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं?
देखिए, हमने पिता-पुत्र के नाते प्रशांत भूषण या फिर शांति भूषण जी को नहीं रखा है. ड्राफ्ट बनाने के लिए कानून के विशेषज्ञों की जरूरत है और इन लोगों ने शुरू से ही इसके लिए अथक प्रयास किया है. इनका समिति में होना जरूरी था. इन दोनों को पूरा देश इनकी विशेषज्ञता की वजह से जानता है, न कि पिता-पुत्र होने की वजह से.
आपने नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार की किस आधार पर प्रशंसा की?
मैने किसी व्यक्ति विशेष की प्रशंसा नहीं की. गुजरात और बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में हुए विकास कार्यों की प्रशंसा की और हम फिर कहते हैं कि गांवों के विकास के बगैर देश का विकास संभव नहीं. इसलिए दूसरे राज्यों को गुजरात और बिहार के गांवों की तर्ज पर अपने राज्यों के गांवों को विकसित बनाने का काम करना चाहिए.
नरेंद्र मोदी के कार्यों की आप प्रशंसा कर रहे हैं, जब कि उन पर दंगे कराने के आरोप है?
नहीं, मैं किसी भी प्रकार की हिंसा या सांप्रदायिक दंगों का कतई समर्थन नहीं करता. न ही व्यक्ति के तौर पर नरेंद्र मोदी की प्रशंसा कर रहा हूं. मैं पहले ही कह चुका हूं कि गुजरात के ग्रामीण क्षेत्रों में हुए विकास कार्यों की सराहना करता हूं.
 
विधेयक के बनने वाले प्रारूप के लिए गठित समिति के कार्यों में कितनी पारदर्शिता होगी?
विधेयक का मसौदा तैयार करने की पूरी प्रक्रिया पारदर्शी होगी और पूरी प्रक्रिया वीडियो कांफ्रेंंसिंग के जरिए देशवासियों को दिखाई जाएगी. मसौदे की प्रति इंटरनेट पर तथा उसकी मुद्रित प्रतियां  गांव-गांव तक भेज कर सुझाव मंगाए जाएंगे.
 
देश में अनगिनत भ्रष्ट नेता और मंत्री हैं, फिर शरद पवार ही आपके निशाने पर क्यों हैं?
नहीं, नहीं. मेरे निशाने पर कोई व्यक्ति विशेष नहीं है. मेरे निशाने पर भ्रष्टाचारी हैं. मेरी लड़ाई भ्रष्टाचार की प्रवृति से है. 20 वर्षों से चल रही मेरी इस लड़ाई की वजह से महाराष्ट्र में कई मंत्री और 400 से अधिक अधिकारी नपे हैं. लेकिन उनसे मेरी कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं थी और न है.
 
क्या महिला आरक्षण बिल का जो हस्र हुआ, वहीं हस्र इसका भी नहीं होगा?
मुझे पूरा विश्वास है कि ऐसा नहीं होगा, और यदि इस विधेयक के प्रति सरकार कुछ अनपेक्षित कार्य करती है तो 15 अगस्त के बाद फिर आंदोलन शुरू होगा.
 
क्या समिति में दो अध्यक्षों के होने से समस्याएं खड़ी नहीं होगी?
नहीं, ऐसी बात नहीं है. और वैसे भी यह समिति दो महीनों के लिए है, जिसका काम सिर्फ लोकपाल बिल का प्रारूप बनाना भर है. कभी-कभी विषम परिस्थितियों में इस तरह का समझौता करना पड़ता है.    
 
समिति में सरकार द्वारा नामित पांचों सदस्यों की संपत्ति सार्वजिनक होगी और क्या आपके पांचों प्रतिनिधि जिनमें आप स्वयं शामिल है, अपनी संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक करेंगे?
देखिए, यह जो समिति बनी है और इसके जो सदस्य हैं, वे कोई लाभ के पद पर नहीं है कि संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक किया जाए, लेकिन पारदर्शिता बनाए रखने के लिए सदस्यों की संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक करने में हमें कोई दिक्कत नहीं है.
 
आपको संसद और लोकतंत्र पर कितना विश्वास है?

संसद और लोकतंत्र पर पूरा विश्वास है, लेकिन इस लोकतांत्रिक ढांचे में भ्रष्ट मंत्रियों और अधिकारियों ने सेंध लगा दी है. आजादी के बाद से ही देश संसद से कम और न्याय व्यवस्था से अधिक संचालित हो रहा है जो कि किसी लोकतंत्र के बहुत अच्छी बात नहीं है.
 
क्या आपके मन में कभी यह विचार नहीं आया कि चुनाव लडऩा चाहिए?
मैं एक आम आदमी हूं और चुनाव लडऩा अब आम आदमी के बूते की बात नहीं रह गई है, लोग चंद रुपयों के लिए किसी को भी वोट दे देते हैं. ऐसे में मेरी तो जमानत ही जब्त हो जाएगी. (हंसते हुए)
शायद सांसद या मंत्री बन कर आप ज्यादा लोगों के लिए काम कर सकते थे?
मैं एक आम आदमी के रूप में भी लोगों के लिए अपने स्तर पर बहुत काम कर रहा हूं. लोगों की सेवा के लिए सांसद या मंत्री होना जरूरी नहीं है बल्कि जरूरी है कि उनके दिल में जनहित के लिए जज्बा हो.
 
आंदोलन का स्वरूप इतना बड़ा हो जाएगा, इसकी कितनी उम्मीद थी?
बिलकुल उम्मीद नहीं थी कि आंदोलन इतना बड़ा होगा, लेकिन इस आंदोलन ने साफ कर दिया कि देश अब भ्रष्टाचारियों को बर्दाश्त नहीं करेगा. और यही कारण है कि सरकार की चूलें चार दिन में ही हिल गईं. 
 
नेगेटिव वोटिंग अगर लागू हो जाए तो परिदृश्य में क्या बदलाव आएगा?
बहुत कुछ बदल जाएगा. आज लोगों के पास ‘सांपनाथ’ और ‘नागनाथ’ में से किसी एक को चुनना ही है, विकल्प नहीं है. उम्मीदवार जीत के लिए करोड़ों रुपये खर्च करते हैं. लेकिन जब लोगों को नापंसदगी का अधिकार मिल जाएगा, तो पानी की तरह पैसे बहाने वाले नेताओं के होश ठिकाने आ जाएंगे और इससे भ्रष्टाचार को खत्म करने में भी मदद मिलेगी.
 
 

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