शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

बिहारः दो कदम आगे, दो कदम पीछे

सदियों से गंगा की अविरल धार अपने साथ बहुतों गर्दो-गुबार को प्रवाहित करती रही है. इस धार ने अपने साथ पाटिल ग्राम से पाटलीपुत्र और पटना तक की स्मृतियों को सहेजा और प्रवाहित किया है. बिहार के कई राजवंशों के उत्थान और पतन की गाथाओं को अपने गर्भ में रखा है. चाहे चंद्रगुप्त की स्मृतियां हो या फिर समाजिक न्याय की झंडाबरदारी करते लालू प्रसाद की राजनीतिक उत्थान या फिर हांसिये पर जाने की घटना हो, गंगा की यह धार सबकी गवाह है. यही गंगा अपनी धार के साथ लायी गई कटान की माटी से बिहार की धरती को ऊपजाऊ बना कर उसे समृद्ध करती रही है, लेकिन आज हालात बदले हैं.

जब अखबारों में "बिहार में विकास" सुर्खियां बटोर रही है लेकिन राज्य के उपमुख्यमंत्री व वित्तमंत्री सुशील कुमार मोदी द्वारा विधानसभा में पेश सालाना आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट कुछ अलग कहानी बयां करती है. इस रिपोर्ट को पढ़ते हुए सुशील मोदी ने कहा, "बिहार में प्रति व्यक्ति आय पूरे देश में सबसे कम है.” कुल 509 पन्नों के इस आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2010-11 को वित्त विभाग और आद्री ने मिलकर तैयार किया है.

अब यदि रिपोर्ट के आंकड़ों पर गौर करें - तो राज्य की प्रति व्यक्ति सालाना आय 17,590 रुपए है. यह राशि राष्ट्रीय औसत का केवल एक तिहाई है. बीते वित्तीय वर्ष 2009-10 में राज्य का सकल घरेलू उत्पाद 1,68,603 करोड़ रुपया था. जबकि हाल ही में प्रकाशित हुई राज्य आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2010-11 के अनुसार राज्य की अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का योगदान कम हुआ है. फिर सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों? क्या गंगा द्वारा सिंचित जोत जमीन की उर्वरकता कम हुई है या फिर खेती के प्रति बिहारियों में उदासीनता ने ऐसा किया?

उत्तर भी साफ-साफ झलकता है- गंगा जैसे कल थी, आज भी वैसी ही है, उसने कोई भेदभाव नहीं किया है. बावजूद इसके खेती के प्रति लोगों में अब वो लगाव नहीं रहा जो कभी था. अब लोग उत्पादन और निर्माण के द्वितीयक सेक्टर की ओर उन्मुख हुए हैं और यहां बिहारी श्रमजीविता के नतीजे भी दिखे हैं. इस क्षेत्र में वृद्धि 13 प्रतिशत से बढ़कर 17 प्रतिशत दर्ज की गई है. वहीं व्यापार-होटल आदि तृतीयक सेक्टर का योगदान 6 प्रतिशत से बढ़कर 11 प्रतिशत हो गया. जब कि कृषि क्षेत्र को फिर से पटरी पर लाने के लिए 13.4 लाख किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड जारी किया गया है.

अब पांच -छह साल पीछे से आंकड़ों पर नजर दौड़ा जाए. असल में, खाद्यान्न के उत्पादन के मामले में वर्ष 2004-05 के 79.06 लाख टन के मुकाबले 2008-09 में 122.20 लाख टन, फिर 2009-10 में 105.08 लाख टन हो गया. निबंधित वाहनों की संख्या के मामले में वर्ष 2005-06 में 80 हजार के मुकाबले 2009-10 में चार गुणा बढ़ोत्तरी हुई और निबंधित वाहनों की संख्या 3.1 लाख हो गयी. दूरसंचार के क्षेत्र में 2005-06 से अब तक दस गुणा वृद्धि दर्ज की गयी. यह संख्या 42 लाख कनेक्शन से बढ़कर 415 लाख हो गयी. वाणिज्यिक बैंकों की शाखाओं की संख्या के मामले में मामूली वृद्धि हुई और मार्च 2005 के 3648 बैंक शाखाओं की तुलना में मार्च 2010 में शाखाओं की संख्या 4156 हो गयी.

लेकिन यह रिपोर्ट तमाम क्षेत्रों में बढ़त दिखाने के बावजूद राज्य के प्रति व्यक्ति आय के मामले में चुप है. यह बात यदि छह वर्ष पहले होती तो कोई आश्चर्य नहीं होता. फिर छह वर्षों से लगातार चल रही विकास की गाड़ी राज्य के प्रति व्यक्ति आय को और आगे क्यों नहीं ले जा पायी. यह प्रश्न अब विकास के दावे को मुंह चिढ़ा रहा है.

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