शनिवार, 16 अप्रैल 2011

‘हमारा कोई राजनीतिक मकसद नहीं है’



पत्रकारिता छोड़ कर सूचना अधिकार कानून के लिए संघर्ष करते हुए मनीष सिसोदिया ने आरटीआई कार्यकर्ता के रूप में अपनी पहचान बनाई. उस दौरान उन्होंने महसूस किया कि भ्रष्टाचार को खत्म किए बगैर यह कानून बहुत ज्यादा सार्थक नहीं होगा. उन्होंने भ्रष्टाचार उन्मूलन आंदोलन की नींव रख कर सरकार को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया. पर्दे के पीछे से इस आंदोलन की जमीन तैयार कर और उसे मंजिल तक पहुंचाने में लगे मनीष सिसोदिया से मेरी हुई बातचीत का अंश:-

देश में कई समस्याएं हैं लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ ही आंदोलन का मन कैसे बना?
हम लोग सूचना के अधिकार कानून के लिए संघर्षरत थे. उसी दौरान यह महसूस किया कि यह कानून तब तक कारगर नहीं हो सकता, जब तक कि भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए कोई सख्त कानून नहीं होगा. इसके बाद हम लोग इस दिशा में बढऩे लगे, तभी लंबित लोकपाल विधेयक का मामला आया, लेकिन इसमें काफी खामियां थी. हमने जन लोकपाल विधेयक तैयार करने की ठानी और लोगों के सुझाव से जन लोकपाल विधेयक तैयार कराया तथा सरकार के समक्ष रखा. स्वाभाविक था सरकार नहीं मानी और हमारा आंदोलन शुरू हुआ. नतीजा सामने है.
 
आखिर इस आंदोलन के नेतृत्व के लिए आप लोगों ने अन्ना हजारे को ही क्यों चुना?
आरटीआई आंदोलन के समय से ही हम अन्ना को जानते थे. उन्होंने महाराष्ट्र में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन किया है. ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति हैं. तो लगा ये हमारे इस आंदोलन को सही नेतृत्व दे सकते हैं. अन्ना ने भी हमारे प्रस्ताव को मान लिया.
 
क्या आपको उम्मीद थी कि आंदोलन जंतर-मंतर तक ही नहीं बल्कि देशव्यापी होगा?
जी हां, उम्मीद जरूर थी कि देश भर से समर्थन मिलेगा, लेकिन यह आंदोलन इतना बड़ा होगा, इसकी उम्मीद नहीं थी.
 
आंदोलन से इतने बड़े पैमाने पर लोगों के जुडऩे का कारण आप क्या मानते हैं?
कई कारण हैं, लोगों के भीतर भ्रष्टाचार के खिलाफ आक्रोश तो था ही, इसी बीच अरब देशों में हुए जनांदोलनों ने लोगों को मनोवैज्ञानिक रूप से मोटिवेट किया. इसके अलावा सोशल नेटवर्किंग साइट्स और इंटरनेट ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई.
 
किरण बेदी और स्वामी अग्निवेश को समिति में नहीं रखे जाने और दूसरी ओर पिता-पुत्र को समिति में जगह दिए जाने के खिलाफ आवाज उठी है, आपका इस पर विचार....
पहली बात, किरण बेदी और स्वामी अग्निवेश ने स्वयं ही समिति में रहने से मना कर दिया था, उनके पास अन्य दूसरी जिम्मेदारियां हैं और जहां तक शांति भूषण और प्रशांत भूषण जी की बात है तो दोनों ही कानून के विशेषज्ञ है, उन्हें उनकी विशेषज्ञता की वजह से पूरा देश जानता है. विधेयक के प्रारूप को बनाने में शुरू से ही दोनों ने अथक प्रयास किया है. और इस पर किसी तरह का विवाद खड़ा करने को कोई तुक नहीं है.
 
आपकी आगे की रणनीति?
देखिए, हमारा कोई राजनीतिक मकसद नहीं है. हमने सूचना के अधिकार कानून के लिए काम किया, अब भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए प्रयास हो रहा है, इसके आगे राजनीतिक सुधार का मामला है. इसके अतंरगत निर्वाचित सांसदों को वापस बुलाने का अधिकार और मतदाताओं के पास उम्मीदवारों के चुनाव में ‘इनमें  से कोई’ का  वैकल्पिक अधिकार भी शामिल है.
 
आंदोलन की तैयारी के बारे में बताएं?
नवंबर, 2010 से हम लोग इस दिशा में सक्रिय हुए. इसके बाद हमने कई स्तर पर लोगों को अपने साथ जोडऩे और उन्हें भ्रष्टाचार के खिलाफ जागरूक करने का प्रयास किया. लोगों को जोडऩे के लिए हम लोगों ने अलग-अलग टीम बना कर देश भर का दौरा किया. साथ ही इंटरनेट के माध्यम से मसलन ई-मेल, सोशल नेटवर्किंग साइट्स का भी इस्तेमाल किया.

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