गुरुवार, 2 सितंबर 2010

बिहार में करें विहार

'हर हर महादेव', ' बम भोले' का जयकारा लगाते भगवाधारी शिवभक्तों का रेला. मंदिर प्रांगण में धूप व कपूर के जलने और उनसे उठते सुगंधित घुए, घंटों की टन-टन की आवाज. पंडों की व्यस्तता और मंदिर के बाहर दुकानों पर छनती जलेबियां. मंदिर से सटे 52 बीघा के क्षेत्रफल में फैला तालाब और उसके किनारे लगे छायादार पेड़ों के नीचे हंसी ठिठोली करते व गांजा का दम चढ़ाते लोग. मेला परिसर में महिलाओं के सौंदर्य प्रासधनों की सजी फुटपाथी दुकानें. पिजड़े में चहकती रंग-बिरंगी चिड़िया. यह नजारा है, राखी पूर्णिमा के दिन बाबा महेंद्रनाथ मंदिर का.
देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के गृह जिला सीवान के मुख्यालय से 43 किलोमीटर दूर स्थित सिसवन प्रखंड के मेंहदार गांव में स्थित है यह मंदिर. 17 वीं सदी में तत्कालीन नेपाल नरेश महेंद्र द्वारा निर्मित इस मंदिर के बारे में किवंदंती है कि नरेश महेंद्र के सपने में एक दिन भगवान शिव प्रकट हुए और कहा कि यदि वह कुष्ठ रोग से मुक्त होना चाहते हैं तो मेंहदार के कीचड़युक्त तालाब में स्नान करें. नरेश ने सपने में भगवान शिव द्वरा बताये इस तालाब में स्नान कर कुष्ठ रोग से मुक्ति पायी और यही भगवान शिव के मंदिर का निर्माण कराया जिसका नाम नरेश महेंद्र के नाम पर पड़ा. समय बीतते गए और मंदिर की गिरती -ढहती दीवारों की मरम्मत के लिए लोग आस-पास के गांवों से चंदा संग्रह किया करते थे लेकिन अब वह बात नहीं है. अब भगवान शिव का यह आवास बिहार सरकार के पर्यटन मंत्रालय की नजर में आ गया है. मंदिर के गुंबद पर बने पीतल के कलश की चमक अपने बहुरे दिन की कथा बयां कर रहा है. तालाब की सफाई करायी गई है, किनारे कसे गए हैं और तालाब के चारों ओर लगे पेड़ सुदूर खेतों के बीच मनोहारी प्राकृतिक दृश्य सृजित करते हैं. लेकिन ये सब तभी हुआ जब इसे सरकारी संरक्षण की आंच मिली.
दरअसल, हाल में बिहार सरकार ने राज्य के कई ऐसे भूले बिसरे स्थानों की पहचान की है, जिनका धार्मिक व सामाजिक महत्व है और उनसे रोचक किवंदंतियां जुड़ी हैं. ऐसे भूले बिसरे स्थानों को अब सरकार पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर राज्य के पर्यटन को विस्तृत फलक देना चाहती है.
बिहार राज्य पर्यटन निगम के उप महाप्रबंधक नवीन कुमार कहते हैं, 'राज्य के जो विश्व स्तरीय पर्यटन स्थल हैं उन्हें देखने के लिए तो भारी संख्या में देशी विदेशी पर्यटक आते ही हैं लेकिन जब उन्हें इन छोटे-छोटे पर्यटन स्थलों और उनसे जुड़ी किवंदंतियों के बारे पता चलता है तो उनकी रुचि स्वाभाविक तौर पर उन स्थानों पर जाने की होती है. इसको ध्यान में रख कर ऐसे स्थानों की शिनाख्त कर उसे विकसित करने की कवायद शुरू की है.'
उल्लेखनीय है कि बिहार के राजस्व आय का एक बहुत बड़ा हिस्सा पर्यटन से ही आता है, ऐसे में सरकार अधिक से अधिक संख्या में देशी-विदेशी सैलानियों को राज्य की ओर आकर्षित करना चाहती है जिससे राज्य के आय में बढ़ोत्तरी हो. बिहार पर्टयन निगम ने हाल ही में नदी पर्यटन शुरू किया है. नवीन कुमार फिर कहते हैं, ' निगम ने नदी पर्यटन के तहत क्रूज सेवा शुरू की है. यह क्रूज पूरी तरह से पंच सितारा सुविधाओं से लैस है. इसके लिए पर्यटकों से चार हजार डॉलर लिए जाते हैं. खास कर यह क्रूज सेवा विदेशी सैलानियों को ध्यान में रख कर शुरू किया गया है. पर्यटक कोलकाता से चलेंगे और बिहार के पर्यटन स्थलों का भ्रमण करते हुए वाराणसी तक जायेंगे. '
इसी तरह मुजफ्फरपुर के लीची के बागानों को हरा भरा रखने के लिए सरकार किसानों को आर्थिक मदद देने पर भी विचार कर रही है हालांकि इन्हें अभी बतौर ऋण आर्थिक सहायता दी जाती है. 8वीं सदी में चंद्रवंशी राजा भैरवेंद्र सिंह ने 100 फीट ऊंच्चाई के गुबंद वाले सूर्यदेव मंदिर का निर्माण
औरंगाबाद में कराया था. यहां हर वर्ष फरवरी-मार्च में देव महोत्सव का आयोजन होता है जहां स्थानीय हस्तशिल्प के नमूने देखने योग्य होते हैं. कहा जाए तो एक तरह से यह महोत्सव भक्ति, मौज-मस्ती के साथ ही स्थानीय हस्तशिल्प के लिए बेहतर बाजार भी साबित होता है. सूर्य मंदिर के अलावा यहां का दाउद खान किला भी देखने योग्य है. इस किला का निर्माण 17वीं सदी में मुगल शासक औरंगजेब के शासन काल तात्कालीन बिहार के गवर्नर दाउद खान ने कराया था.
प्रकृति का अनूठा उपहार भी इस राज्य को मिला है. बेगूसराय जिले को पर्यटक बर्ड सेंचुरी की वजह से जानते हैं, हालांकि पिछले कुछ वर्षों में वहां बढ़े प्रदूषण ने इसके अस्तित्व पर सवालिया निशान लगा दिया था. कवर झील का पानी दूषित होने लगा था लेकिन सरकार ने सुधि ली और अब यह फिर नवंबर-दिसंबर में प्रवासी पक्षियों के कलरव से भर उठता है और वहां के विहंगम दृश्य को देख पर्यटक भावविभोर हो जाते हैं. इसके अलावा जिले के पंच मंदिर, राघे श्याम मंदिर, हरसराय स्तूप भी दर्शनीय है.
ऐतिहासिक विक्रमशिला विश्वद्यालय के लिए विख्यात भागलपुर को मंदिरों के गढ़ के रूप में माना जाना चाहिए. गंगा नदी के तट पर स्थित कूपा घाट के अलावा जैन मंदिर, महाराज कर्ण द्वारा निर्मित कर्णगढ़, मंदार पर्वत, घूरनपीर बाबा, खानख्वाह-ए-शाहबाजियां, योगिनी धाम और गंगा के बीचो-बीच स्थित बाबा अजगैबीनाथ मंदिर विदेशी पर्यटकों की निगाह से अभी भी ओझल है. सरकार की कोशिश है कि इन पर्यटन स्थलों तक विदेशी पर्यटकों को लाया जाए.
फिरंगियों के खिलाफ 1857 में वीर कुंवर सिंह द्वारा 80 वर्ष की उम्र तलवार उठाने की वजह से भोजपुर इतिहास में विशिष्ट हो गया लेकिन यही नहीं भोजपुर या फिर आरा के नाम से प्रसिद्ध इस जिले में सरकार के हालिया प्रयास से जैन मंदिर, जगदीशपुर किला और अरण्यदेवी मंदिर अब नये पर्यटन स्थल बन कर उभरे हैं, जो कभी उपेक्षित हुआ करते थे.
1764 में लड़ी गई बक्सर की लड़ाई भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में पहली सबसे बड़ी लड़ाई मानी जाती है. यह लड़ाई जिस जगह हुई वह आज भी है और यह पर्यटकों के साथ-साथ इतिहास प्रेमियों के लिए हमेशा पसंदीदा जगह रही. यहां का बक्सर किला अपने समय के गौरव और एतिहासिक घटनाओं का मूक गवाह है. चौसा, बिहारीजी का मंदिर, ब्रह्मेश्वर नाथ मंदिर की राज्य पर्यटन विभाग ने अब जा कर सुध ली है.
मिथिला क्षेत्र के केंद्र स्थल दरभंगा का इतिहास समृद्धी से भरा है. दरभंगा राज की समृद्धी की कथा बयां करता दरभंगा राज किला, रामबाग पैलेश, नरगौना पैलेश मौजूद है. किले की दीवालों की ऊंच्चाई 200 फीट है. बाबा कुशेश्वर धाम, अहिल्या स्थान भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है. मधुश्रावणी और कोजागरा जैसे महोत्सव अपनी सांस्कृतिक विरासत से रूबरू कराते हैं.
बौद्ध और हिंदू धर्मावलंवियों के लिए गया एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है. इसकी वजह से सरकार जिले की तमाम छोटे-बड़े धार्मिक स्थलों को पर्यटन की दृष्टि से विकसित किया है. बुद्धत्व की प्राप्ती के बाद जब भगवान बुद्ध कुशीनगर की ओर जा रहे थे तो उन्होंने कुछ दिनों तक गोपालगंज में भी विश्राम किया था. गोपालगंज में थावे दुर्गा, भूरी श्रवर आश्रम, घुर्णा कुंड मंदिर भक्तों के आस्था का प्रमुख केंद्र है. थावे में लगने वाला वैशाखी मेला पर्यटकों को खूब आकर्षित करता है.
इसे विरोधाभाष ही कहा जाएगा कि जहानाबाद में स्थित धरउत बौध मठ शांति और अहिंसा का संदेश देता है और वहीं एक दशक पूर्व बाथे जैसे नरसंहार से यह जिला एक बार फिर सुर्खियों में आया था.
प्रसिद्ध लेखक जार्ज आरवेल का जन्म स्थान व महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह की उद्गम स्थली रही मोतीहारी में विश्व का सबसे बड़ा स्तूप केसरिया है जो बरबस ही पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है.
बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम के निदेशक विनय कुमार कहते हैं, ' पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए हमने हाल में कई नई योजनाएं शुरू की है. इसके तहत ही मौलाना मजहरुल हक, डॉ. राजेंद्र प्रसाद के पैतृक आवास को संग्रहालय के तौर पर नये सिरे से विकसित कर रहे हैं. एशिया के सबसे बड़े पशुमेला सोनपुर मेला में सुविधाएं बढ़ाई गई है. लेकिन हमारा उद्देश्य है कि हम वैसे छोटे-छोटे स्थानों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करें जिनका एतिहासिक, धार्मिक महत्व रहा है. साथ ही स्थानीय हस्तशिल्प को विश्वफलक पर प्रस्तुत करने के लिए महोत्सव के आयोजन पर भी हमारा ध्यान है. '
पर्यटकों की दृष्टि में कभी अति पिछड़े और असुरक्षित माने जाने वाले राज्य बिहार की फिजा में खामोश बदलाव आया है. इसकी गवाही लगातार बढ़ते विदेशी पर्यटकों की संख्या है. उम्मीद की जा रही है कि आने वाले दिनों में बिहार देश का एक बेहतर टूरिस्ट स्टेट डेस्टीनेशन बन कर उभरेगा.