मंगलवार, 20 अप्रैल 2010

मिसरी से भी मीठी होती है अपनी भाषा

भोजपुरी गायन में पुरबी को प्रधानता दिलाने वाले गायक भरत शर्मा नवागंतुक भोजपुरी गायकों के लिए प्रेरणा बन गए हैं. भोजपुरी गानों में अश्लीलता व फूहड़पन को खत्म करने के लिए उन्होंने अभियान चला रखा है. भोजपुरी भाषा-संस्कृति और गीतों के संबंध में हमने उनसे की गई बातचीत.

भोजपुरी गायन के क्षेत्र में आपने आज जो मुकाम हासिल किया है, उसके लिए आप किन कारकों को महत्वपूर्ण मानते हैं?

दरअसल, हमारा करियर कभी गायक के रूप में होगा. इसकी कल्पना मैने कभी नहीं की थी. हां हमारे पिता राजेश्वर शर्मा गायक थे. इसलिए गाने-बजाने का माहौल हमें विरासत में मिला. मैंने गांव-देहात में शौकिया रामायण गाना शुरू कर दिया और बस इस सफऱ पर निकला तो अब तक बढ़ रहा हूं.

आपने गायन के लिए भोजपुरी भाषा का ही चयन क्यों किया?

देखिए, मैं ठेठ गांव देहात का रहने वाला हूं, बिहार के भोजपुरी बहुल क्षेत्र से, हमारी बोली, भाषा, उठना-बैठना, हंसना-रोना सब कुछ भोजपुरी ही है. मां की गोद से गांव जवार तक भोजपुरी से ही हमारा वास्ता रहा. वैसे भी मैं बहुत कम पढ़ा लिखा हूं. अपनी भाषा की मिठास मिसरी से भी अधिक मीठी लगती है मुझे.

अब भोजपुरी गांव-घर की भाषा की सीमा लांघ कर बाजार की भाषा के रूप में स्थापित हो गई है. इसमें भोजपुरी गीतों व फिल्मों का कितना योगदान है?

कहा जाता है कि संगीत की अपनी कोई भाषा नहीं होती, सुर, ताल और लयात्मकता उसे सहज संप्रेषणीय बना देते हैं. यही चीज भोजपुरी गीतों के साथ हुआ. इस भाषा और इसके संगीत के माधुर्य ने अपनी जगह बना ली. वैसे लोग भी भोजपुरी गीतों को गुनुनाते मिल जाते हैं, जिन्हें भोजपुरी नहीं आती. यहीं हाल फिल्मों के साथ भी हुआ, लेकिन इसकी गति धीमी थी. जैसे जैसे तकनीक विकसित हुआ, टीवी चैनल आए, आडियो-वीडियो का जमाना आया इस भाषा और संगीत की विकास यात्रा उत्तरोतर बढ़ती गई.

आप भोजपुरी संगीत में अश्लीलता और द्विअर्थी गीतों के विरोधी रहे हैं, अच्छे खासे तादाद में लोग आपके इस मुहिम में साथ हैं. लेकिन यह समस्या जस की तस बरकरार है, क्या इससे भोजपुरी संगीत, समाज और संस्कृति पर नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता...

बिल्कूल पड़ता है. लेकिन इस समस्या से निजात के लिए मुट्ठी भर लोग काफी नहीं है. पूरे भोजपुरी समुदाय को इसके बारे में जागरुक होना होगा. लोगों को अश्लीलता और द्विअर्थी गीतों को नकारना होगा, जो सस्ती लोकप्रियता के लिए एक समृद्ध भाषा-संस्कृति की गरीमा के साथ खिलवाड़ करते हैं.

आखिर भोजपुरी में अश्लील गीतों का प्रचन बढ़ा कैसे?

भोजपुरी सिर्फ एक भाषा नहीं है, इसकी अपनी संस्कृति, संस्कार और सभ्यता है, भोजपुरी के लोकगायन में विरह-वेदना, पुरबी, सोहर, झुमर, निर्गुन जैसे राग है. इन रागों के आधार पर गीतों को श्रृंगार रस में परोसने की प्रक्रिया में कुछ लोग अतिवाद के शिकार हो गए. 80 के दशक के मध्य से हमारे एक समकक्ष गायक ने अश्लील और द्विअर्थी गीत गाना आरंभ किया और आज इसने संक्रमण का रूप ले लिया है. शुरुआत में लोग मजे लेकर सुनते थे लेकिन इस तरह के गीत-संगीत कालजयी नहीं होते. अब लोग नकारने लगे हैं.

इसके बावजूद.....

हां, हां, आगे की बात बता रहा हूं. आज पंद्रह से 20 साल के लड़के गीत लिख रहे हैं. उन्हें अभी जीवन के वसंत और पतझड़ का कोई अनुभव नहीं है. बस युवा उम्र के उच्छवास से प्रेरित हो कर वे अश्लीलता की ओर बढ़ जाते हैं. उनमें परिपक्वता की कमी है.

महेंद्र मिश्र और भिखारी ठाकुर जैसे भोजपुरी के पुरोधाओं ने भोजपुरी साहित्य संगीत को काफी समृद्ध किया, लेकिन उनकी परपंरा को कोई आगे नहीं बढ़ा सका.

इससे भला कोई कैसे इनकार कर सकता है. जहां तक रही उनकी परंपरा को आगे बढ़ाने की बात, तो ऐसा नहीं है कि उस दिशा में काम नहीं हुआ, लेकिन उस समय में तकनीक का विकास उतना नहीं हुआ था, इसलिए बहुत सारी चीजे सामने नहीं आ सकी.

आपने गायन का प्रशिक्षण कहां से लिया? पहले तो आप सिर्फ रामायण गाया करते थे फिर लोकगायन के क्षेत्र में कैसे बढ़े?

विधिवत रूप से मैने गायन का कोई प्रशिक्षण नहीं लिया लेकिन हमारे गुरु जगदिश सिंह ने बहुत गुर सीखाए है. रामायण में भी दो गुटों के बीच गायन का दंगल होता था और उसमें रामायण के साथ अश्लील गानों की भी भरमार होती थी. यदि उसमें टिकना है तो उस माहौल के साथ तारतम्य बैठाना होगा, जो मुझे कबूल नहीं था. इसलिए मैं लोकगायन के क्षेत्र में बढ़ा.

आपकी पहली आडियो कैसेट कब बाजार में आई?

1989 में,

आप अपने शुरुआती दिनों के संघर्ष के बारे बताए.

वर्ष 1971 से हमने गायकी की शुरआत की. हम अपने गांव नगपुरा से कोलकाता गए और रामायण गाने लगे. वहीं हिन्दुस्तान मोटर्समें नौकरी भी लगी. जिन्दगी अपनी रौ में चलने लगी. लेकिन मेरा उद्देश्य कुछ अलग था. उस जमाने में कोलकाता सांस्कृतिक कर्मियों के लिए एक बेहतर मंच था. हमने सोचा कि वहां लोगों की संगत में हम भी कुछ सीख लेंगे. 1976 में हम धनबाद आ गये. तब तक रामायण की गायकी में हमने खासी शोहरत हासिल कर ली थी. हमारे समकक्ष उस समय शारदा सिन्हा और बालेश्वर थे. लेकिन उस समय तक हमारी कोई कैसेट बाजार में नहीं आई थी. मेरी पहली कैसेट आर-सिरीज से आई. पहला कैसेट दाग कहाँ से पडी”, था. इसके अलावा और एक कैसेट था. दोनों के लिए मुझे बतौर पारिश्रमिक 1000 रुपये मिले थे. वे दिन मेरे लिए संघर्ष के थे. टी-सिरीज से पहली बार 1989 में राजा, पिय जन गांजा”, “अइले मोर सजनवा”, और राम जानेतीन कैसेट आए. और इसी तरह जिन्दगी का सफर धूप-छाव के बीच गुजरता रहा.

आपने गायन के अलावा फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कदम बढ़ाए हैं, इसका कारण?

देखिए, मेरे उद्देश्य रहा है कि मैं भोजपुरी संस्कृति को आगे ले जाने के लिए अपने स्तर पर जिनता कर सकता हूं करु. तकनीक विकसित होता गया तो इसके लिए माध्यम सुलभ हुए और मैं इसका फायदा उठाना चाहता था. जो बाते संगीत के माध्यम से उतने बेहतर तरीके से संप्रेषित नहीं कि जा सकती थी उसे फिल्म के माध्यम से संप्रेषित करने की कोशिश की.

क्या भोजपुरी गीतों में अश्लीलता और फूहड़पन यूं ही बरकरार रहेगा?

नहीं, बिल्कूल नहीं, अब इसके दिन लदने वाले है. भोजपुरियां संगीत प्रेमी अब इसे नकार रहे हैं. उन्हें स्वस्थ व स्वच्छ चीजे चाहिए. आप देख सकते हैं कि जो लोग इस तरह के गाने ले कर आए, साल दो साल के बाद बाजार से बाहर हो गये. यह बताता है कि यदि टिके रहना है तो अश्लीलता और फूहड़पन का दामन छोड़ना होगा.

भोजपुरी प्रदेश की मांग लंबे समय से की जा रही है, हाल ही में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने पूर्वांचल के गठन का प्रस्ताव रखा था. इसे आप किस रूप में देखते हैं?

भोजपुरी की अपनी समृद्ध परंपरा, संस्कृति-सभ्यता रही है. भोजपुरी प्रदेश का अवश्य गठन होना चाहिए, इसे नाम चाहे जो दिया जाए. बिहार के बक्सर से लेकर उत्तर प्रदेश के फैजाबाद तक भोजपुरी बोली जाती है. इस भाषा के साथ करोड़ों लोगों की भावनाएं जुड़ी हुई लेकिन अब देखा जा रहा है राजनेता अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए इनकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ करते हैं. ऐसा नहीं होना चाहिए. यदि मायावती सही मायने में इस ओर सकारात्मक कदम उठाती है तो स्वागत योग्य है. हम उनका समर्थन करते हैं.

भोजपुरी में कई टीवी चैनल आ गए, पत्रिका प्रकाशित हो रही है, फिल्मों और गानों का विस्तृत बाजार मौजूद है. इसके बावजूद इस भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में अब तक शामिल नहीं किया गया. इसके बारे में आपकी क्या राय है?

निश्चित रूप से भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करना चाहिए. इसके लिए कई संगठन काम कर रहे हैं, लेकिन इस क्षेत्र के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की रवैया उपेक्षापूर्ण है. हमलोग अखिल विश्व भोजपुरी समाज मंच के बैनर तले इसके लिए प्रयास कर रहे हैं. इस संगठन का राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते मैं चाहता हूं कि ब्लॉक स्तर पर इसकी सब कमेटी बनाई जाए और लोगों में अपनी भाषा के प्रति जागरुकता ला कर इस भाषा आंदोलन को सशक्त बनाया जाए.

आप भोजपुरी के आईकान बन गए हैं. ऐसी स्थिति में आपके सार्वजनिक और निजी जीवन में क्या अंतर है.

अब हम लोगों का कुछ भी निजी नहीं है, जो है सो सब सार्वजनिक ही है.

आप अपने परिवार के विषय में कुछ बताना चाहेंगे?

परिवार के विषय में बताने लायक वैसा कुछ नहीं है.

(यह साक्षात्कार श्रीराजेश ने द संडे इंडियन पत्रिका के भोजपुरी संस्करण के लिए लिया था)

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