गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

अश्लील नहीं, सलील है भोजपुरी गीत

संतोष अपने छह साल के भतीजे से जब कहते हैं कि सोनू कोई गाना गाओ तो सोनू बेधड़क शुरू हो जाता है-

केकरा से कहीं अपना दिलवा के हाल, ततकाल अइहऽ

देवरा कटले बावे गाल, ततकाल अईहऽ.

यह गीत संतोष के परिवार और उनके जैसे भोजपुरिया लोगों के बीच किसी अश्लीलता के दायरा में नहीं आता. हालांकि बहुत से लोग इसे फूहड़-अश्लील कह सकते हैं. लेकिन इसके पहले भोजपुरी की समृद्ध संस्कृति- परंपरा को जानना जरूरी हो जाता है.

भोजपुरी ना सिर्फ मिठास से भरी भाषा है, बल्कि श्रृंगार रस में गोता लगाती हुई वीरता का शंखनाद करने वाली संस्कृति है. भोजपुरी गीतों में भक्ति, प्रकृति के प्रति प्रेम, उलाहना, दर्द, घर-परिवार की बातें, यहां तक कि गांव-जवार-टोला और मवेशियों का बखान भी दिखता है, तो दूसरी ओर बेटी की विदाई और जीजा-शाली, देवर – भाभी के बीच की हंसी-ठिठोली व रास का सतरंगा इंद्रघनुष भी दिखता है. जबकि भोजपुरी की पारंपरिक लोकगीतों का संसार भरा-पूरा है, जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक ठीक उसी तरह से आती है जैसे कि खेत खलिहान.

शास्त्रीय संगीत में राग पर आधारित जितने मूल गीत हैं उनमें से अधिकांश भोजपुरी में ही हैं. यह हर संगीत घराने के लिए बेशकीमती धरोहर है. बदलते समाज के साथ हिलोर मारती ईच्छाएं इन गीतों के माध्यम से अभिव्यक्त होती हैं-

शादी शहरे में करिहऽ हमार बाबूजी,

जहवां घर में होखे फ्रिज, टीवी अलमारी बाबूजी...

वहीं बेटी की बिदाई के दौरान जो भाव उभरता है उसे सूफियाना अंदाज में कुछ इस तरह भी प्रस्तुत किया गया है-

सोनवा के पिंजड़ा में बंद भइल, हाय राम

चिरई के जियरा उदास...

भोजपुरी गीतों की बात हो और पूरबी विधा से लोगों को रू--रू कराने वाले महेंद्र मिसिर की चर्चा न हो यह संभव नहीं है. 1935 से 1960 तक कलकत्ता से बनारस तक हर जगह पूरबी की तान छिड़ी रहती थी. आज न सिर्फ उत्तर भारत बल्कि देश के हर शहर, कस्बे में सबसे अधिक कोई गीत सुनी जाती है तो वह भोजपुरी गीत है. इस बात का अंदाजा इसी से लगया जा सकता है कि गीत-संगीत के डीवीडी-सीडी का बाजार में अकेले 24 प्रतिशत हिस्सेदारी भोजपुरी गीतों के कैसेटों का है. इसमें सिर्फ भोजपुरी फिल्म और एलबम ही नहीं बल्कि सोहर, झूमर, पूरबी, फगुआ, चइता, मइया के गीत, छठ और कांवर गीतों के कैसेट्स भी शामिल है. अगर भोजपुरी में द्वीअर्थी या फिर अश्लील गीतों की शुरुआत की बात की जाए तो सबसे पहले बालेश्वर ने इस गाने 'कटहर के कोवा तू खइब तऽ ई मोटका.....' से की. बाद में 'कतनो देखाई हरीहरी बोकवा बोलत नइखे' जैसे गीत प्रचलन में आए. इस परंपरा को गुड्डू रंगीला और राधेश्याम रसिया ने आगे बढ़ाया. एक जमाने में ये गीत - 'करवा फेरी ना बलम जी हमरी ओरिया' को फूहड़ की श्रेणी में रखा गया था लेकिन आज के संदर्भ में देखा जाय तो यह सामान्य गीत है. हालांकि भोजपुरिया मिजाज से हट कर देखा जाय तो यह फूहड़ जरूर लगता है, लेकिन इसे अश्लील कहने के पहले कई कारकों पर विचार करना पड़ेगा. वहीं भरत शर्मा 'व्यास' के श्रंगार रस वाले गीत - 'गोरिया चांद के अंजोरिया नियर गोर बाड़ू हो...' भी भोजपुरी संगीत के सौंदर्य शास्त्र को कसौटी पर कस कर समृद्ध करती है. 'पनिया के जहाज से पलटनिया बन अइहऽ, पिया लेले अइहऽ हो टिकवा बंगाल के...' में शारदा सिन्हा ने जिस तरह से प्रवासी बलम का इंतजार करती पत्नी की उससे जुड़े नेह को दिखाने की कोशिश की है, गीत के परिप्रेक्ष्य में यह अतुलनीय है और यह गीत भोजपुरी गीत-संगीत जगत के लिए धरोहर है. भोजपुरी के प्रख्यात गायक भरत शर्मा 'व्यास' के अनुसार, 'सिर्फ बाजार के नाम पर कुछ भी रद्दी परोसने की अनुमति नहीं दी जा सकती. गायकों को अपनी भाषा और माटी की गरीमा का ख्याल रख कर गाना चाहिए. क्योंकि गीत अमर होती है और वह कभी नहीं मरती. जैसे अभी परोसी जाएगी उसी रूप में वह पीढ़ी दर पीढ़ी जाएगी. हालांकि भोजपुरी भाषा की जो मिठास है वह श्रृंगार रस से ओत-प्रोत है, इसे और चटक बनाने के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए, क्योंकि सोहबर रंग लोगों को आकर्षित करता है ना कि गिजमिजाया रंग.'

हर काल, हर समाज की एक खासियत होती है, दूसरा समाज इसे किस रूप में स्वीकारता है यह उस समाज के परिप्रेक्ष्य में नहीं देखना चाहिए. भोजपुरी संगीत को शीर्ष पर पहुंचाने और अपने सुर से भोजपुरी गीत-संगीत को समृद्ध करने वाली पद्मश्री शारदा सिन्हा का विचार है कि बगैर श्रृंगार को व्याख्ति किए एक बेहतरीन गीत की कल्पना नहीं की जा सकती लेकिन श्रृंगार को व्याख्ति करने का भी एक मर्यादित तरीका होता है, जिसका अतिक्रमण नहीं होना चाहिए. वह कहती हैं - 'आजकल भोजपुरी फिल्मों में आइटम सांग के नाम पर जबरन भड़काऊ और बगैर सिर-पैर वाले गाने ठूसे जाते हैं, साथ ही नर्तकी के पहनावे को भी सुहर तो नहीं ही कहा जा सकता. इसके बावजूद तर्क होता है कि ऐसे दृश्य या गीत दर्शकों-श्रोताओं की मांग पर दिए जाते हैं. यह भी ध्यान देने वाली बात है कि शीघ्र लोकप्रियता पाने की ललक के चलते जिसने भी इस तरह के गीत गाने शुरू किए, उनकी चमक चार दिन की चांदनी हो कर गई. हालांकि अगर राजा-रजवाड़ा के समय के गीतों प नजर डालें, तो जो तवायफों द्वारा मुजरा के रूप में गायी जाती थी, वह भी सभ्य-सुसंस्कृत थी.' शारदा सिन्हा द्वीअर्थी और फूहड़ गीतों को भोजपुरी भाषा के लिए ग्रहण मानते हुए कहती हैं, 'ऐसा नहीं है कि इसके खिलाफ काम नहीं हो रहा. एक तरह से कहा जाय तो नि:शब्द आंदोलन चल रहा है.'

भोजपुरी लोकगीत गायिका विजया भारती कहती हैं, ' इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि भोजपुरी गीतों में अश्लीलता नहीं है, लेकिन इसे जरुरत से ज्यादा प्रचारित किया गया, वास्तव में बहुत सारी कैसेट रिकार्डिंग कंपनियां सब नये-नये अपरिपक्व गायकों को कम पैसे, यहां तक कि पैसा ले कर कैसेट निकालती हैं, और उन कंपनियों को गीतों की स्तरीयता से कोई मतलब नहीं है. उन्हें तो सिर्फ बाजार दिखता है. लेकिन जो गायक अश्लील, फूहड़ या द्वीअर्थी गीतों के माध्यम से जैसे फलक पर आते हैं वैसे ही गायकी के पटल से गायब हो जाते हैं. सच कहा जाय तो यह पूरा माध्यम ही भ्रष्ट हो गया है.' भोजपुरी गीतों के मिजाज पर बात करते हुए वह कहती हैं, ' ऐसे भी भोजपुरी रसीली भाषा है, इसे फगुआ और चइता के परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है. श्रृंगार की बात रस के साथ कहने और सुनने में जितना मजा आता है उसे फूहड़पन में सुन कर विरक्ति ही होती है.यहीं हुआ है भोजपुरी गीतों के साथ.'

भोजपुरी टीवी चैनल महुआ द्वारा शुरू किए गए 'सुर संग्राम' से उभरी गायिका अनामिका सिंह कहती हैं, 'कमजोर की मेहरी, गांव भर की भउजी वाली कहावत भोजपुरी गीतों के साथे हो गई है. वास्तव में भोजपुरी गीतों में उतनी अश्लीलता नहीं है जितना कि प्रचारित किया जाता है.' वह एक उदाहरण देती हैं, 'एक गीत 'निरहू सटल रहे...' खूब हिट हुई थी, इस गीत को अश्लील तक करार दिया गया लेकिन इस गीत के अर्थ को समझने की कोशिश की जाय तो बहुत सोहबर है. दरअसल, गीत में कहा गया है कि एक महिला बीमार है, तब निरहू सटा था, निरहू का भोजपुरी में शाब्दिक अर्थ सिंदूर होता है. किसी भी सुहागन को अपने सुहाग के प्रति इससे बढिय़ा ढंग से प्रेम कैसे व्याख्या की जा सकती है. अर्थात बीमारी के दौरान भी उस महिला की मांग में सिंदूर सजी थी. लेकिन लोगों ने निरहू का अर्थ किसी व्यक्ति विशेष के रूप में लिया, जिससे यह अश्लील लगने लगा.' आज भी भरत शर्मा, अजीत अकेला, मुन्ना सिंह, मनोज तिवारी, निरहुआ, पवन सिंह, छैला बिहारी, देवी, कल्पना, प्रतीभा सिंह जैसे गायक अपनी गीत और आवाज से भोजपुरिया गीत की पिटारी को भर रहे हैं.

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